अदालत ने एमसीडी से कहा, सभी संवर्गों को वेतन के बराबर वितरण के लिए योजना तैयार करे

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को यहां के नगर निगमों से कहा कि उनके पास उपलब्ध धन को देखते हुये कर्मचारियों के संवर्गों को एक दूसरे पर तरजीह दिये बिना उन्हें समानता के आधार पर वेतन भुगतान करने की योजना तैयार करें।

न्यायमूर्ति हिमा कोहली एवं न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने शहर के तीनों नगर निगमों से कहा कि कम कोष होने पर उन्हें अपने कर्मचारियों के सभी संवर्गों के बीच फंड के बराबर वितरण के लिए उनके पास एक नीति होनी चाहिए। एमसीडी कर्मचारियों की तरफ दायर विभिन्न याचिकाओं पर पीठ सुनवाई कर रही थी। इसमें शिक्षक और नर्स आदि शामिल हैं जिन्होंने दावा किया है कि कई महीनों से उन्हें वेतन नहीं मिला है। तीनों निगमों के पेंशनधारकों ने भी उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और दावा किया है कि इस साल फरवरी से उन्हें पेंशन नहीं मिला है। सुनवाई के दौरान निगमों ने कहा कि उन्होंने कुछ संवर्गों के कर्मचारियों को वेतन भुगतान किया है लेकिन कोष की कमी के कारण सबको भुगतान करने में असमर्थ हैं।

निगमों ने अदालत में यह भी बताया कि कर्मचारियों को वेतन भुगतान के लिये आवश्यक धन राशि दिल्ली सरकार ने उन्हें जारी नहीं किया है। नगर निगमों की इस दलील का अदालत में दिल्ली सरकार की तरफ से पेश अतिरिक्त स्थायी अधिवक्ता सत्यकाम ने विरोध किया।

उन्होंने दलील दी कि कोविड-19 महामारी के कारण कर संग्रह में 57 फीसदी की गिरावट आयी है, और इसलिये कर संग्रह का जो हिस्सा निगमों को जाता है उसमें भी कटौती हुयी है। सत्यकाम ने अदालत को यह भी बताया कि दिल्ली सरकार को जीएसटी संग्रह का हिस्सा केंद्र से नहीं मिला है, इसलिये निगमों के कर्मचारियों के वेतन के मुद्दे पर केंद्र को भी पार्टी बनाया जाना चाहिये। अदालत ने इसके बाद इस मामले में केंद्र सरकार को भी पार्टी बनाया और मामले की सुनवाई के लिये पांच नवंबर की तारीख मुकर्रर की।