भारत-चीन मानस की लड़ाई

-प्रो. एनके सिंह-

भारत और चीन दोनों देशों की इतिहास में पूर्वी विचारधारा तथा युद्ध रणनीति के निर्माण में बड़ी भूमिका रही है। भारतीय जवानों ने हमेशा विश्व में बेहद सशक्त व बहादुर पैदल सेना का प्रतिनिधित्व किया है। लेकिन इन्हीं जवानों को 1962 के भारत-चीन युद्ध में बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। आज की लड़ाई 1962 की लड़ाई से भिन्न है। भारत को 4800 किलोमीटर जमीन को खोना पड़ा। यह उस बीते समय की लड़ाई है जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू कई लोगों के चेताने के बावजूद चीन से मित्रता की पींघे जारी रखते हैं और हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा ऐजाद करते हैं। इसके बावजूद चीन, भारत को धोखा देता है और उस पर हमला कर देता है। उस समय विश्वास यह किया जाता था कि चीन जैसा पड़ोसी देश कभी भारत पर हमला नहीं करेगा। अबकी लड़ाई मोदी और नए भारत की हिंदू समर्थक ताकतों द्वारा बनाए गए सुरक्षा किले की प्राचीर से है।

भारत अर्थव्यवस्था, विज्ञान और अंतरिक्ष के लिहाज से एक शक्तिशाली ताकत है जो चंद्रमा पर उतरकर अपना प्रदर्शन कर चुका है। आज भारत की ताकत केवल यही नहीं है कि वह प्रौद्योगिकी व आर्थिक क्षेत्र में उभरती ताकत है, बल्कि यह भी कि उसे सहयोगी और मित्रों के रूप में विश्व में बड़ा समर्थन हासिल है। अमरीका ने खुले रूप से समर्थन की घोषणा की है और उसने पूर्वी सागर की ओर तीन बेड़े रवाना कर दिए हैं। इंग्लैंड, फ्रांस, रूस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण कोरिया ने भी भारत के प्रति अपना समर्थन जताया है। इससे पहले हमारे पास कभी भी इतना शक्तिशाली अंतरराष्ट्रीय समर्थन नहीं रहा। अब चीन भारत से किसी भी संघर्ष में संलग्न होने से पूर्व दो बार जरूर सोचेगा। चीन ने लद्दाख में गलवान घाटी में घुसपैठ की जिस पर उसका अंशतः दावा है। दोनों देशों की लड़ाई में भारत ने 20 जवान व अधिकारी खो दिए। यह एक बड़ा नुकसान है क्योंकि ऐसी आशा नहीं थी कि ऐसा कड़ा संघर्ष भी हो सकता है। चीन ने शुरू में किसी भी प्रकार के नुकसान की पुष्टि नहीं की। उसने भारतीय पक्ष की ओर से प्रतिक्रिया का इंतजार किया क्योंकि उसका अपना नुकसान भारतीय पक्ष से कहीं ज्यादा था।

अब हालत यह है कि वे अपने को इस तरह पेश करते हैं कि उन्हें किसी भी सिरे से पकड़ा नहीं जा सकता है। सन जू की किताब आर्ट ऑफ वॉर में बताया गया है कि आकारविहीनता (फॉर्मलैसनैस) युद्ध का लक्ष्य है ताकि कोई भी उस पर हमला न कर सके। अर्थात अपने को इस तरह पेश करो कि कोई भी उस पर उंगली न उठा सके और न ही पकड़ सके। अब स्थिति यह है कि चीन ने शुरू में स्वयं नियंत्रण रेखा को परिभाषित करने से इनकार कर दिया, ऐसे में कोई भी विभिन्न स्थितियों में नियंत्रण रेखा को लेकर कोई भी दावा कर सकता है। चीनी पक्ष जानबूझ कर इसे परिभाषित नहीं कर रहा है। यहां तक कि जब वह नियंत्रण रेखा की सांझा समझ के लिए सहमत हो सकता था, वह इसे बदलने में लगा रहा। चीनी पक्ष को जो नुकसान हुआ, वह कुछ समय के लिए अनिश्चित रहा तथा अब भी कोई आश्वस्त नहीं है। अगर सन जू को एक अधिकृत प्राधिकारी मान लिया जाए तो चीनी युद्ध नीति की दो महत्त्वपूर्ण विशेषताएं ये हैं कि कांइयां बने रहिए और किसी की पकड़ में न आएं।

अगर आपको एक बार पहचान लिया जाता है अथवा कोई किसी सिरे से पकड़ने में सफल हो जाता है तो आप पर निश्चित रूप से हमला हो सकता है। दूसरा महत्त्वपूर्ण मनन है कि अभियान को गुप्त रखिए तथा छिपकर चलते रहिए। निर्णायक तत्त्व आश्चर्य है। सन जू यहां तक कि धोखेबाजी और विरोधी को झूठ बोलकर बहकाने का भी समर्थन करता है। उदाहरण के लिए वह विरोधी को धोखा देने के लिए पैरवी करता है कि अपने को इस तरह प्रदर्शित करिए कि हमारी तैयारियां अपूर्ण हैं और हमारे पास बेहतर उपकरण नहीं हैं। वह अपने को कमजोर प्रदर्शित करने की वकालत करता है। अर्थात यह दिखावा किया जाना चाहिए कि हमारे पास ताकत नहीं है ताकि समय आने पर विरोधी को धोखा दिया जा सके और उस पर जीत हासिल की जा सके। वास्तविक लड़ाई दो बड़ी शक्तियों की लड़ाई है, किंतु एक पूरी तरह निर्लज्ज है तथा वह वायरस फैलाने जैसी कार्रवाई में भी संलग्न हो सकता है।

उसे ऐसे घृणित कार्य का सहारा लेने में भी लज्जा नहीं आती है। भारत को अपने को आक्रमण की सभी संभावनाओं व हथियारों के प्रयोग से सुरक्षित करना है। यह छोटा संघर्ष भारत के लिए एक चेतावनी है कि वह चीन के बुरे इरादों से सावधान रहे। मैं देख रहा हूं कि चीन भारतीय प्रभाव से मुक्त रहने की कोशिश करता है तथा उसने संचार प्रणाली को अपने नियंत्रण में रखा हुआ है और उसका शेष विश्व से भी कोई संपर्क नहीं है। विगत में मुझे दो चीनी विश्वविद्यालयों ने वहां के शिक्षकों को संबोधित करने के लिए बुलाया था। जब मैंने वहां छात्रों को संबोधित किया तो मैंने देखा कि वहां बहुत सारे पाकिस्तानी छात्र थे। मैंने उनसे उनकी भाषा में ही बात की, उस भाषा में जिसे मैं भी जानता था।

बुद्ध के विचार हमारा सांझा लिंक है, लेकिन मैंने देखा कि चीनी लोग बुद्ध से दूर होते जा रहे हैं और वे केवल कन्फ्यूशियस या ताओ को ही मान्यता देते हैं। जब मैंने बुद्ध पर लेक्चर दिया तो उसका उन पर कोई असर नहीं पड़ा, लेकिन जैसे ही मैंने कन्फ्यूशियस की बात की तो उनके चेहरे पर मुस्कान के साथ एक स्वीकार्य भाव दिखा। यह मुझे समझने के लिए एक इशारा था कि चीनी लोग भारत से दूर होते जा रहे हैं, जिन संतों को वे भारतीय समझते हैं, उन्हें अपने ऊपर थोपने की वे इजाजत नहीं देते हैं। दूसरे शब्दों में वे यहां तक कि ज्ञान पद्धति शास्त्र, जहां भारत एक रुतबा रखता है, के क्षेत्र में भी अपना आधिपत्य स्थापित करने की कोशिश कर रहे थे। भारत को चीन से तीन क्षेत्रों में लड़ाई लड़नी है : सैन्य, रणनीतिक विचार तथा व्यापार। 59 चीनी ऐप्स पर पाबंदी लगाकर मोदी सरकार ने चीन से आर्थिक मोर्चे पर लड़ाई को घोषित कर दिया है। साथ ही मेक इन इंडिया अभियान के समक्ष वैकल्पिक उत्पाद व सेवाएं ईजाद करने की मांग को पूरा करने के लिए बड़ी चुनौतियां हैं। अब हमें यह देखना है कि इन मोर्चों पर चीजें कैसे बदलती हैं।