क्या मज़दूर मायने रखते है ?

2011 की जनगणना के अनुसार भारत में आंतरिक प्रवासियों की कुल संख्या देश की जनसंख्या का 37% है  और इसमें से 33 प्रतिशत प्रवासी श्रमिक है। यूपी, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, बंगाल, ओडिसा, छत्तीसगढ़, असम और भी कई राज्यों के मजदूर है जो महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, दिल्ली में मजदूरी करते है जिसमे वयस्क, बूढ़े, पुरुष और महिलाएं सभी शामिल है। बिना सुरक्षा-सम्मान के मजदूर हर काम करने के लिए मजबूर है क्योकि उन्हें अपने राज्यों में काम नहीं मिलता है जिससे वो अपने परिवार को पाल सके। 

पिछले तीन महीने (मार्च) से हुए देशव्यापी बंद से प्रवासी मजदूर पर गहरा प्रभाव पड़ा। देश में लॉकडाउन होने से मजदूरों का पैसा कमाने का ज़रिया बंद हो गया और मजदूरो अपने घर जाने के लिए सारकर से साधन की मांग करने लगे परन्तु सरकार उन्हें सुविधाएं पूरी तरीके से नहीं दे सकी। इस बात से नाराज़ लाखो की संख्या में मजदूरो ने अपने परिवार और अपने सामान को शरीर पे ढोकर 1200 की.मी. से भी ज्यादा लम्बी यात्रा पैदल और साइकिल से तय की। मगर तपती धुप में सड़को पे पैदल भूखे प्यासे चलते-चलते बहुत से मजदूरों ने सड़क पर दम तोड़ दिया। उत्तरप्रदेश में बिहार जाने वाले मजदूरों के शरीर पर केमिकल का छिड़काव किया गया। कड़कती धुप में कंधे पर अपना सामान लिए पैदल चलते हुए मजदूरों को पुलिस ने रोड पर मुर्गा बनाया और भी कई तरह की सजा दी। मुज्जफर पुर स्टेशन पर एक महिला ने भूख से दम तोड़ दिया और ये सिर्फ एक के साथ नहीं हुआ ऐसे और भी कई मामले सामने आये।

सवाल ?

तो अब सवाल ये है की आज भी सरकार इतनी विकसित नहीं हुई की वो अपने मजदूरों को सही समय पर सुविधाएं दे सकें ? अगर विदेश से लोगो को सुरक्षित रखने के लिए अपने देश लाया गया है तो जो अपने देश में रह रहे मजदूर जिनके पास अपनी छत तक नहीं है उनको भी अच्छी सुविधा मिलने का बराबर का अधिकार है। जब सरकार पर दबाब पड़ा तब कुछ राज्यों ने अपने-अपने लोगो को सुविधाएं दी और कुछ आज भी चुप है। जिन राज्यों में  मजदूरों की संख्या ज्यादा है तो क्या वहाँ की सरकारों पिछले 70 सालो में उनके लिए कुछ नहीं कर पाई ? इसलिए उन्हें दूसरे राज्यों का सहारा लेना पड़ रहा है। आज महामारी आने पर ही सरकार मजदूरों की परेशानीओं का अंदाजा लगा पाई है तो पिछले सालो में क्या सभी फैसले सिर्फ अमीरो के लिए ही हुआ करते थे ? जितनी बड़ी मात्रा में मजदूरों की वापसी हुई है क्या उतने ही मजदूर वापस आएंगे ? आज श्रमिक वर्ग इतना नाराज़ है की उन्होंने सरकार और प्रसाशन पर भरोसा करना छोड़ दिया है। इस कोरोना महामारी ने फिर से गरीबो को उनकी अहमियत के बारे में बताया है ।