अयोध्या विवादः CJI के सामने भिड़ गए सीनियर वकील

 शुक्रवार को दो सीनियर वकीलों के बीच गर्मागर्म बहस हुई. दोनों पक्षों के वकीलों में ऐसी खींचतान हुई जो आम तौर पर सुप्रीम कोर्ट में नज़र नहीं आती. ये बहस अयोध्या विवाद की सुनवाई के दौरान हुई. इस दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा चुपचाप देखते रहे.

मुस्लिम पक्षकारों की तरफ से वकील राजीव धवन सबसे पहले मुख्य न्यायाधीश के सामने खड़े हो गए. जैसे ही सुनवाई शुरू हुई सरकार की तरफ से पैरवी करने वाले एडिशनल सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह उनकी दाहिनी तरफ आकर खड़े हो गए. लेकिन उनको वहां बैठने में दिक्कत हो रही थी. इसलिये मनिंदर सिंह ने राजीव धवन से थोड़ा खिसकने को कहा. इससे राजीव धवन नाराज़ हो गए. उन्होंने कहा,  ‘मैं अपनी सही जगह पर खड़ा हूं.’ इसके बाद मनिंदर सिंह ने उनसे दोबारा जगह देने को कहा.

राजीव धवन ने कड़ी आवाज़ में कहा- आप बैठ जाइए.
मनिंदर- आप तमीज से पेश आएं.


राजीव धवन- नॉन सेन्स
मनिंदर- आप नॉन सेन्स बात कर रहे हैं.
राजीव धवन- आप नॉन सेन्स हैं.
सरकारी वकील तुषार मेहता- कुछ लोग कोर्ट की गरिमा खराब कर रहे हैं.
राजीव धवन- मुझे पता है.
मनिंदर सिंह- इनको क्रैश कोर्स की ज़रूरत है.

ये सब होता रहा और मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा चुपचाप देखते रहे. बेंच पर बैठे जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नज़ीर ने भी कुछ नहीं कहा. फिर जस्टिस मिश्रा ने राजीव धवन से बहस शुरू करने को कहा. तब आगे की सुनवाई शुरू हुई.

धवन इस बात पर बहस कर रहे थे कि क्या 1994 में आये इस्माइल फारुकी जजमेंट के कुछ हिस्से को संविधान पीठ को भेजा जायेगा या नहीं. उस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद ज़रूरी नहीं है और मस्जिद इस्लाम का हिस्सा नहीं है. मुस्लिम पक्ष का कहना है कि इस फैसले का बाबरी मस्जिद विवाद पर असर पड़ेगा. इसलिये इसे संविधान पीठ को सौंपा जाना चाहिये. अभी कोर्ट को ये तय करना है कि इस मामले को संविधान पीठ को भेजा जाए या नहीं. शुक्रवार को कोर्ट ने कहा कि सभी पक्षों की राय सुनने से पहले मामला संविधान पीठ को नहीं सौंपा जा सकता है.

धवन ने रखी यह दलील
धवन ने दलील दी कि इस मामले को बिना बहस के ही संविधान पीठ को भेजा जाए. इसके लिए उन्होंने किसी और मामले का उदाहरण दिया. धवन ने कहा कि निकाह हलाला और बहू विवाह का मामला सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुने बिना ही संविधान पीठ को भेज दिया.

धवन- उस मामले को आपने संविधान पीठ को इसलिए भेजा क्योंकि वह एक महत्वपूर्ण मामला था. क्या अयोध्‍या का मामला महत्वपूर्ण नहीं है. आप अभी बताएं कि क्या ये महत्वपूर्ण नहीं है. देश जानना चाहता है. यहां प्रेस भी मौजूद है.

तभी हिन्दू पक्ष के वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि ऐसे बहस नहीं हो सकती.

जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि आप प्रेस को शामिल न करे. वह अपना काम कर रहे हैं. और हम अपना. हम दोनों पक्षों को सुन कर ही फैसला करेंगे कि मामला संविधान पीठ में जायेगा या नहीं. आप बहस पूरी करें.

दो घण्टे की सुनवाई के बाद इस मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख 27 अप्रैल की दी गयी. धवन अपनी बहस आगे भी जारी रखेंगे.