युवाओं को कट्टरपंथ की तरफ जाने से रोकने के लिए आर्मी ने बनाई रणनीति

कश्मीर घाटी में कट्टरपंथ की तरफ जाते युवाओं को रोकने के लिए भारतीय सेना ने मिलकर काम करने की रणनीति बनाई है। आर्मी कमांडर्स कॉन्फ्रेंस में इस बारे में व्यापक चर्चा हुई कि किस तरह युवाओं को सही रास्ते पर लाया जा सकता है? दरअसल, सेना के सामने आतंकवाद से लड़ने के अलावा यह भी बड़ी चुनौती है कि युवाओं को कट्टरपंथ की तरफ जाने से कैसे रोके जाएं?

सेना का मानना है कि इसके लिए सिविल सोसाइटी और नेताओं को मिलकर काम करना होगा। सेना के एक अधिकारी ने कहा कि अप्रैल से अक्टूबर तक का वक्त घाटी के लिए अहम है। अभी वहां पर्यटन होता है, अमरनाथ यात्रा होती है साथ ही सेब की सप्लाइ भी शुरू होती है। अक्टूबर में स्कूलों में एग्जाम होते हैं तो यही वर्किंग, स्कूलिंग और अर्निंग सीजन भी है। ऐसे में अभी सबको मिलकर युवाओं के बीच कैंपेन चलाना चाहिए। सेना ने युवाओं को कट्टरपंथ की तरफ जाने से रोकने के साथ ही भटके युवाओं को वापस लाने की मुहिम को अपनी प्रायॉरिटी में शामिल किया है।

2 जवानों के कारण सेना भी चिंतित
हाल ही में सेना के एक जवान के हिजबुल मुजाहिद्दीन में शामिल होने की खबर आई थी। सेना के एक अधिकारी ने कहा कि सेना के भीतर कोई कट्टरपंथ की तरफ नहीं जा रहा है और सिर्फ दो इस तरह के अपवाद सामने आए। उन्होंने कहा कि वैसे भी हमारा मानना है कि उन्हें जबरन इस तरफ धकेला गया।

हालांकि सेना के भीतर अब इस बात की चिंता जरूर होने लगी है कि ट्रेंड जवान अगर कट्टरपंथ की तरफ जाएंगे तो वह ज्यादा बड़ा खतरा होंगे। जम्मू-कश्मीर लाइट इंफेंटरी रेजिमेंट में 50 फीसदी लोग यहीं से हैं यानी करीब 10 हजार लोग है। इन लोगों पर घरवालों का दबाव भी रहता है इसलिए सेना उन्हें भी लगातार सेंसेटाइज कर रही है।

‘अनजान फोन न उठाएं जवान’
सेना के जवान जब भी छुट्टी पर जाते हैं तो उनसे कहा जाता है कि वह अपने नजदीकी पोस्ट में इसकी सूचना दें कि वह कहां हैं और कब, कहां जा रहे हैं। हालांकि यह प्रैक्टिकल तौर पर हो नहीं पा रहा है क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे वह ज्यादा खतरे में आ सकते हैं। जवानों को यह भी कहा जा रहा है कि वह अनजान फोन ना उठाएं। साथ ही उनके लिए हेल्पलाइन जैसा सिस्टम भी बनाया गया है ताकि जरूरत पड़ने पर बस एक मिस्डकॉल करने से ही उन्हें मदद मिल सके।