कोयले से पेट्रोल तैयार करने की योजना को हरी झंडी

देश में ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार एक तरफ सौर एवं पवन ऊर्जा को बढ़ावा दे रही है, वहीं कोयले के भंडारों के इस्तेमाल के लिए नए स्वच्छ विकल्पों पर भी काम कर रही है। इसी कड़ी वैज्ञानिक एवं औद्यौगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने कोयले को तरल स्वरूप में विकसित करके उससे पेट्रोल-डीजल तैयार करने की तकनीक विकसित की है। इसे अब उद्योग जगत को हस्तांतरित करने के प्रयास हो रहे हैं।

सीएसआईआर की धनबाद स्थित प्रयोगशाला केंद्रीय खनन एवं ईधन अनुसंधान संस्थान (सीआईएमएफआर) ने कोयले को तरल स्वरूप में बदला है। संस्थान में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। संस्थान के निदेशक प्रदीप के सिंह ने ‘हिन्दुस्तान’ को बताया कि केटेलिस्ट के जरिये कोयले को पहले तरल स्वरूप में बदला जाता है। फिर इससे हाइड्रोकार्बन यानी पेट्रोलियम तैयार किया जाता है। प्रयोगशाला में अभी परीक्षण के लिए रोज पांच लीटर हाइड्रोकार्बन तैयार हो रहा है। इसे पेट्रोल, डीजल एवं केरोसिन के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। सीआईएमएफआर द्वारा यहां विज्ञान भवन में ऊर्जा तकनीकों पर तीन दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया गया था।

सिंह के अनुसार कोयले से हाइड्रोर्बन तैयार करने की तकनीक का प्रदर्शन नीति आयोग के वैज्ञानिक सदस्य वीके सारस्वत के समक्ष किया जा चुका है। इसकी एक विस्तृत कार्य योजना भी नीति आयोग को सौंपी गई है। आयोग ने कोयले से पेट्रोलियम पदार्थ तैयार करने की नीति को मंजूरी भी दे दी है। अब हम चाहते हैं कि इस तकनीक को उद्योग जगत को हस्तांतरित किया जाए ताकि बड़े पैमाने पर कोयले का इस्तेमाल पेट्रोलियम उत्पादन के लिए किया जा सके। कोयले से मेथेनॉल बनाने के बाद नीति आयोग का यह दूसरा बड़ा कदम है।

सिंह के अनुसार इससे तीन फायदे होंगे। एक विदेशों से पेट्रोलियम के आयात में कमी आएगी। दूसरे, कोयले से बिजली बनाने में बहुत ज्यादा प्रदूषण होता है जो कम होगा। तीसरे, देश के कोयला भंडार का समुचित इस्तेमाल हो सकेगा। देश में 302 अरब टन से भी ज्यादा कोयले के भंडार हैं। चूंकि बिजली के लिए कोयले के इस्तेमाल को कम करना है, इसलिए इन भंडारों के उपयोग पेट्रोल बनाने के लिए होगा। बता दें सरकार कोयले से मेथेनॉल बनाने पर भी कार्य कर रही है।