जानिए कौन थे – पिछडों को हक व अधिकार दिलाने वाले मंडल मसीह श्री वी.पी. सिंह

  • सामान्य वर्ग से आने वाले वीपी सिंह जी ने बाबा साहेब की जयंती पर पूरे देश में छुट्टी दी, जिनके प्रधानमंत्री रहने के दौरान बाबा साहेब को भारत रत्न दिया गया।
  • बाबा साहब अंबेडकर की फोटो पहली बार जिन्होंने संसद के सेंट्रल हॉल में लगाई, उन्हीं वी पी सिंह जी की आज जन्मजयंती है।
  • वीपी सिंह प्रधान मंत्री के रूप में भारत की पिछड़ी जातियों में सुधार करने की कोशिश के लिए जाने जाते हैं।

आकाश दीप मेहरा, भोपाल

विश्वनाथ प्रताप सिंह को अपने विद्यार्थी जीवन में ही राजनीति से दिलचस्पी हो गई थी। वह समृद्ध परिवार से थे, इस कारण युवाकाल से ही उन्हें राजनीति में उन्हें सफलता प्राप्त हुई।

उनका सम्बन्ध भारतीय कांग्रेस पार्टी के साथ हो गया। 1969-1971 में वह उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुँचे। उन्होंने उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का कार्यभार भी सम्भाला। उनका मुख्यमंत्री कार्यकाल 9 जून 1980 से 28 जून 1982 तक ही रहा।

इसके पश्चात्त वह 29 जनवरी 1983 को केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री बने। विश्वनाथ प्रताप सिंह राज्यसभा के भी सदस्य रहे। 31 दिसम्बर 1984 को वह भारत के केंद्रीय वित्तमंत्री भी बने।

वी. पी. सिंह ने विद्याचरण शुक्ल, रामधन तथा सतपाल मलिक और अन्य असंतुष्ट कांग्रेसियों के साथ मिलकर 2 अक्टूबर 1987 को अपना एक पृथक मोर्चा गठित कर लिया।

इस मोर्चे में भारतीय जनता पार्टी भी सम्मिलित हो गई। वामदलों ने भी राष्ट्रीय मोर्चे को समर्थन देने की घोषणा कर दी। इस प्रकार सात दलों के मोर्चे का निर्माण 6 अगस्त 1988 को हुआ और 11 अक्टूबर 1988 को राष्ट्रीय मोर्चा का विधिवत गठन कर लिया गया।

1989 का लोकसभा चुनाव पूर्ण हुआ। कांग्रेस को भारी क्षति उठानी पड़ी। कांग्रेस को मात्र 197 सीटें ही प्राप्त हुई। विश्वनाथ प्रताप सिंह के राष्ट्रीय मोर्चे को 146 सीटें मिली। भाजपा और वामदलों ने राष्ट्रीय मोर्चे को समर्थन देने का इरादा ज़ाहिर कर दिया।

तब भाजपा के पास 86 सांसद थे और वामदलों के पास 52 सांसद। इस तरह राष्ट्रीय मोर्चे को 248 सदस्यों का समर्थन प्राप्त हो गया वी. पी. सिंह स्वयं को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बता रहे थे।

उन्हें लगता था कि राजीव गांधी और कांग्रेस की पराजय उनके कारण ही सम्भव हुई है। लेकिन चन्द्रशेखर और देवीलाल भी प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शरीक़ हो गए।

ऐसे में यह तय किया गया कि वी. पी. सिंह की प्रधानमंत्री पद पर ताजपोशी होगी और चौधरी देवीलाल को उपप्रधानमंत्री बनाया जाएगा।

प्रधानमंत्री बनते ही वीपी सिंह जी ने सिखों के घाव पर मरहम रखने के लिए स्वर्ण मन्दिर की और दौड़ लगाई।

व्यक्तिगत तौर पर विश्वनाथ प्रताप सिंह बेहद निर्मल स्वभाव के थे और प्रधानमंत्री के रूप में उनकी छवि एक मजबूत और सामाजिक राजनैतिक दूरदर्शी व्यक्ति की थी। वीपी सिंह जी ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को मानकर देश में वंचित समुदायों की सत्ता में हिस्सेदारी पर मोहर लगा दी।

विश्वनाथ प्रताप सिंह भारत की ऐसी शख़्शियतों में शामिल हैं, जिन्होंने ग़ैर-बराबरी दूर करने के लिए बड़ी जंग लड़ी। 1989 के आम चुनाव के पहले प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में उन्होंने वंचितों को अपनी ओर खींचा ही नहीं।

बल्कि चुनाव घोषणा पत्र में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने का वादा भी किया। विश्वनाथ प्रताप की वंचितों के प्रति भावना ही कहेंगे कि उन्होंने सत्ता में आते ही #मंडल_कमीशन की रिपोर्ट लागू करवाने पर काम शुरू कर दिया।

उन्होंने दक्षिण भारत के तेज़-तर्रार आईएएस अधिकारी पीएस कृष्णन को इस काम पर लगाया, जिन्होंने बख़ूबी यह काम करके दिखाया और मंडल कमीशन लागू करने की नींव तैयार कर दी।1989 के लोकसभा चुनाव के बाद जो सरकार बनी थी, वह पिछड़े वर्ग की एकता, उस वर्ग के उभार और उस वर्ग के समर्थन से बनी सरकार थी। कांग्रेस से अलग हुए विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में चुनाव हुआ।

कांग्रेस की पराजय के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थन से विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने। इस दौर में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव व बेनी प्रसाद वर्मा, बिहार में लालू प्रसाद यादव ताक़तवर रूप से सत्ता में आए थे।

सवर्णों द्वारा देशव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू

7 अगस्त 1990 को विश्वनाथ प्रताप सिंह ने रिपोर्ट लागू करने की घोषणा की। 10 अगस्त 1990 को आयोग की सिफ़ारिशों के तहत सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था करने के ख़िलाफ़ सवर्णों द्वारा देशव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया।

उधर 13 अगस्त 1990 को मंडल आयोग की सिफ़ारिश लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी गई। अगले दिन ही 14 अगस्त 1990 को अखिल भारतीय आरक्षण विरोधी मोर्चे के अध्यक्ष उज्ज्वल सिंह ने आरक्षण प्रणाली के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।

आरक्षण लागू करने की इस गहमागहमी के बीच बीजेपी के नेता लालकृष्ण आडवाणी अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए रथयात्रा लेकर निकल पड़े थे और बिहार में उनके गिरफ्तार होने पर बीजेपी ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया।

वीपी सिंह सरकार गिर गई और जनता दल बँट गया।

18 दिसम्बर 1990 को गोरखपुर के तमकुही कोठी मैदान में मांडा के राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह की सभा होने वाली थी। आरक्षण लागू होने बाद सामाजिक न्याय के मसीहा का पहला और मेगा शो गोरखपुर में हुआ।

वीपी सिंह ने रैली में कहा..

‘भूख एक ऐसी आग है कि जब वह पेट तक सीमित रहती है तो अन्न और जल से शांत हो जाती है और जब वह दिमाग तक पहुँचती है तो क्रांति को जन्म देती है। इस पर ग़ौर करना होगा। ग़रीबों के मन की बात दब नहीं सकती और अंततः उसके दृढ़ संकल्प की जीत होगी।’

वीपी सिंह जी ने कहा था…

ग़रीबों की कोई बिरादरी नहीं होती। दंगों में मारे जाने वाले लोग हिंदू और मुसलमान नहीं, भारत के ग़रीब लोग हैं। ग़रीबों के साथ हमेशा अत्याचार होते रहे हैं। इस शोषण अत्याचार को बंद करके समाज के पिछड़े तबक़े के लोगों को ऊपर उठाना होगा।

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़े तबक़े के उभार के लिए जो क्रांति कर दी, उसकी धमक उत्तर भारत में तीन दशक तक बनी रही।

वंचित तबक़े के हज़ारों युवा आईएएस, आईपीएस और पीसीएस सहित विभिन्न न्यायिक सेवाओं में पहुँचे। सरकारी नौकरियों, विश्वविद्यालयों शिक्षण संस्थानों में तेज़ी से पिछड़े वर्ग की हिस्सेदारी बढ़ी।

इंजीनियरिंग कॉलेजों और मेडिकल कॉलेजों में बड़े पैमाने पर समाज के पिछड़े वर्ग के बच्चों को प्रवेश मिलने लगा और ताक़त का उचित बँटवारा नज़र आने लगा।

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने वह कर दिखाया, जिससे यह कहकर इनकार किया जाता रहा था कि पाँचों अँगुलियाँ बराबर नहीं होतीं और यह संभव ही नहीं है कि समाज का हर वर्ग उचित हिस्सेदारी प्राप्त कर सकता है।

यही हैँ वह महान व्यक्तित्व जिसने भारत में पिछड़ों को राजनीति व प्रशासन मे जगह बनाने का मौका दिया।