जिनकी मंशा SC/ST के उत्पीड़न की वही  एक्‍ट का विरोध कर रहे हैं : BJP सांसद

इटावा से बीजेपी के एससी सांसद अशोक दोहरे ने कहा है कि एससी/एसटी एक्ट में कुछ भी बदला नहीं है. इसमें कुछ भी नया नहीं जोड़ा गया है, फिर सवर्ण क्यों विरोध कर रहे हैं? दोहरे के मुताबिक यह कोई आंदोलन नहीं है, कुछ लोगों की यह व्यक्तिगत राय है. जो चाहते हैं कि देश में सामाजिक भाईचारा बना रहे, किसी का उत्पीड़न न हो वे सवर्ण एससी/एसटी एक्ट का विरोध नहीं कर रहे. इसका सिर्फ ऐसे लोग ही विरोध कर रहे हैं जिनकी मंशा अनुसू‍चित जा‍ति के उत्पीड़न की है. इस एक्ट को लेकर ओबीसी का भी कोई विरोध नहीं है.

दोहरे ने कहा “कुछ पार्टियां भी सवर्णों को हवा दे रही हैं, लेकिन इससे सरकार के खिलाफ कोई माहौल नहीं बना है और न बनेगा. हमारी पार्टी ने समाज के कमजोर तबके के लोगों की रहनुमाई करने का काम किया है. इससे बीजेपी मजबूत हुई है. इससे पहले भी तो यह एक्ट प्रभावी था, तब क्यों किसी ने आवाज नहीं उठाई?”

“मोदी सरकार ने 2015 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून को और मजबूत किया था. इसमें 25 तरह के और कार्यों को भी अपराध के दायरे में लाया गया था. पहले सिर्फ 22 मामलों में यह एक्ट लगता था. तब भी इसका कोई विरोध नहीं हुआ था. अनुसूचित जाति के लोगों ने मोदी सरकार के इस फैसले की सराहना की.”

सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया था फैसला?

20 मार्च सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट में एक बदलाव कर दिया था. कोर्ट ने इस एक्ट के तहत आरोपी की तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. केस दर्ज करने से पहले डीएसपी लेवल के अधिकारी की जांच और गिरफ्तारी से पहले एसपी की मंजूरी जरूरी कर दी थी. यह बदलाव तो कोर्ट ने किए लेकिन इसकी आंच आई सरकार पर. अनुसूचित जाति के संगठनों ने कहा कि इसे सरकार ने कमजोर कर दिया.

इस वर्ग में सरकार के लिए अच्छा संदेश नहीं गया. अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों में सरकार विरोधी माहौल बना. जबकि सरकार की कोशिश ये थी कि किसी भी तरह उसकी अनुसूचित जाति और जनजाति विरोधी छवि न बने. इसमें बदलाव के खिलाफ 2 अप्रैल को अनुसूचित जाति के लोगों का देशव्यापी आंदोलन हुआ था. इसलिए सरकार एससी/एसटी एक्ट संशोधन बिल ले आई और वह दोनों सदनों में पास हो गया. अब सवर्णों के संगठन इस एक्ट को 20 मार्च से पहले वाली स्थिति में करने का विरोध कर रहे हैं. इसीलिए उनके निशाने पर सरकार आ गई है.