दिल्ली में लोगों की जान से खेल रहे 30 हजार झोलाछाप डॉक्टर

राजधानी दिल्ली में 30 हजार झोलाछाप डॉक्टर मरीजों की सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। इसके बावजूद पुलिस इनके खिलाफ कार्रवाई करने से कतराती है। दिल्ली मेडिकल काउंसिल (डीएमसी) ने पिछले चार सालों में 296 झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ पुलिस से कार्रवाई करने की सिफारिश की थी। मगर पुलिस ने इनमें से सिर्फ 45 मामलों में ही एफआईआर दर्ज की। पिछले साल झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ आई 310 शिकायतों में से सिर्फ चार मामलों में ही एफआईआर दर्ज की गई।

तीन गुना बढ़ी शिकायतें : डीएमसी के रजिस्ट्रार डॉ. गिरीश त्यागी का कहना है कि साल 2018 में झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ 310 शिकायतें मिलीं थी, जबकि वर्ष 2015 में ऐसी 120 शिकायतें मिली थीं। इस तरह तीन साल में झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ शिकायतें लगभग तीन गुना हो गई हैं। पिछले साल मिली शिकायतों में से 105 लोगों को डीएमसी ने कारण बताओ नोटिस जारी किया था। इनमें से 69 लोगों के खिलाफ क्लोजर रिपोर्ट बनाई थी और 51 के खिलाफ सबूत पाए जाने पर पुलिस से एफआईआर करने की मांग की गई थी। हालांकि, पुलिस ने सिर्फ चार मामलों में एफआईआर दर्ज की।

दिल्ली में 30 हजार झोलाछाप : डॉ. गिरीश त्यागी का कहना है कि राजधानी में लगभग 30 हजार झोलाछापों के प्रैक्टिस करने का अनुमान है। इनकी वजह से हजारों लोगों की जिंदगी दांव पर लगी है। झोलाछापों के खिलाफ गलत दवाएं देने और इंजेक्शन लगाने की शिकायतें अक्सर मिलती हैं।

जान से खिलवाड़ : गत सप्ताह पश्चिमी दिल्ली निवासी इमरान की पीठ में दर्द हुआ तो वह नजदीक में क्लीनिक में गए। वहां झोलाछाप डॉक्टर ने उनके हाथ में इंजेक्शन लगा दिया, जिससे उनका पूरा हाथ नीला पड़ गया।

”अधिकतर मामलों में पुलिस झोलाछाप डॉक्टरों पर कार्रवाई नहीं करती है। इनके खिलाफ कार्रवाई की जिम्मेदारी पुलिस की है।”

विधेयक पास नहीं हो सका

साल 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि एलोपैथिक डिग्री के बिना आधुनिक चिकित्सा पद्धति की प्रैक्टिस करने वाले ‘झोलाछाप’ माने जाएंगे। इसके बाद झोलाछाप डॉक्टरों को पकड़ने और गैरकानूनी रूप से चल रहे क्लीनिक एवं मेडिकल प्रैक्टिस को रोकने के लिए दिल्ली विधानसभा में 1997 में एंटी क्वेकरी विधेयक लाया गया था। हालांकि, यह अभी तक पास नहीं हो सका है।