बिहार मिथिला : गांव की पहली मैट्रिक पास बनीं छात्राएं, मिटाया नन मैट्रिक का दाग

बिहार के दरभंगा जिला मुख्यालय से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित अति पिछडा गांव गोसलावर की दो बेटियों ने गरीबी व कठिनाइयों को झेलते हुए इतिहास रचा है। उनकी कामयाबी से मिथिला गौरवान्वित है। इन दो बेटियों ने इस बार मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर अपने गांव से नन मैट्रिक होने के दाग को मिटा दिया।

मिथिला गौरवान्वित

अपनी बेटियों की कामयाबी से गांव के लोग फूले नहीं समा रहे हैं। इससे बेटियों में पढऩे का अलख जगा है। इस गांव की नेहा कुमारी एवं पूजा कुमारी इस बार मैट्रिक की परीक्षा में सफल हुई है। गांव में स्कूल नहीं होने के कारण बच्चियां स्कूल जाने के लिए कुछ दूर पैदल तो कुछ दूर टेंपो का सहारा लेती थीं।

गरीब माता-पिता ने पढ़ाई के प्रति जुनून

गरीब माता-पिता ने पढ़ाई के प्रति जुनून देख कर इस पर होने वाले खर्च का बीड़ा उठाया। दोनों बच्चियां गांव से डेढ़ किलोमीटर दूर पैदल चलकर आनंदपुर हाई स्कूल पढऩे के लिए जाती थीं। इस गांव में न तो स्कूल है और न ही आंगनबाड़ी केंद्र।

पहली कक्षा के बच्चों को स्कूल जाने के लिए दो किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। इस दौरान भीड़भाड़ वाली मुख्य सड़क को भी पार करना पड़ता है। यही कारण है कि मां-बाप चाहकर भी बच्चों को स्कूल भेजने से कतराते हैं।

अति पिछडा गांव

बिहार के दरभंगा जिला मुख्यालय से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित अति पिछडा गांव गोसलावर की दो बेटियों ने गरीबी व कठिनाइयों को झेलते हुए इतिहास रचा है। उनकी कामयाबी से मिथिला गौरवान्वित है। इन दो बेटियों ने इस बार मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर अपने गांव से नन मैट्रिक होने के दाग को मिटा दिया।

गांव के लोग फूले नहीं समा रहे

अपनी बेटियों की कामयाबी से गांव के लोग फूले नहीं समा रहे हैं। इससे बेटियों में पढऩे का अलख जगा है। इस गांव की नेहा कुमारी एवं पूजा कुमारी इस बार मैट्रिक की परीक्षा में सफल हुई है। गांव में स्कूल नहीं होने के कारण बच्चियां स्कूल जाने के लिए कुछ दूर पैदल तो कुछ दूर टेंपो का सहारा लेती थीं।

गरीब माता-पिता ने पढ़ाई के प्रति जुनून देख कर इस पर होने वाले खर्च का बीड़ा उठाया। दोनों बच्चियां गांव से डेढ़ किलोमीटर दूर पैदल चलकर आनंदपुर हाई स्कूल पढऩे के लिए जाती थीं। इस गांव में न तो स्कूल है और न ही आंगनबाड़ी केंद्र।

पहली कक्षा के बच्चों को स्कूल जाने के लिए दो किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। इस दौरान भीड़भाड़ वाली मुख्य सड़क को भी पार करना पड़ता है। यही कारण है कि मां-बाप चाहकर भी बच्चों को स्कूल भेजने से कतराते हैं।

नेहा के पिता कन्हैया सहनी एवं मां शोभा देवी अन्य बच्चों को भी पढ़ते हुए देखना चाहती हैं। वहीं पूजा कुमारी के पिता बिंदा साहनी एवं मां नलिया देवी को अब जल्द ही अपने गांव में स्कूल खुल जाने की उम्मीद जगी है।