समलैंगिक संबंध अपराध रहेगा या नहीं ,सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा फैसला

आईपीसी की धारा-377 के तहत समलैंगिकता को अपराध माना गया है। सर्वोच्च न्यायलय में अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि दो बालिगों के बीच अगर सहमति से समलौंगिक संबंध बनाए जाते हैं तो उसे अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाए। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच ने 10 जुलाई से मामले की सुनवाई शुरू की थी और 17 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

 क्या है धारा 377

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के मुताबिक कोई किसी पुरुष, स्त्री या पशुओं से प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध संबंध बनाता है तो यह अपराध होगा। इस अपराध के लिए उसे उम्रकैद या 10 साल तक की कैद के साथ आर्थिक दंड का भागी होना पड़ेगा। सीधे शब्दों में कहें तो धारा-377 के मुताबिक अगर दो अडल्ट आपसी सहमति से भी समलैंगिक संबंध बनाते हैं तो वह अपराध होगा।

सुनवाई के दौरान क्या रहा था सुप्रीम कोर्ट का रुख

– सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि अगर कोई कानून मौलिक अधिकारों के खिलाफ है तो हम इस बात का इंतजार नहीं कर सकते कि बहुमत की सरकार इसे रद्द करे।

– चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच ने कहा कि वह साफ करना चाहते हैं कि वह धारा-377 को पूरी तरह से खारिज नहीं करने जा रहे हैं बल्कि वह धारा-377 के उस प्रावधान को देख रहे हैं जिसके तहत प्रावधान है कि दो बालिग अगर समलैंगिक संबंध बनाते हैं तो वह अपराध है या नहीं।

अपराध से बाहर रखने के पक्ष में दलील

– याचिकाकर्ता के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा था कि एलजीबीटीक्यू (लेज्बियन, गे, बाय सेक्शुअल्स, ट्रांसजेंडर्स, क्वीर) के मौलिक अधिकार प्रोटेक्टेड होना चाहिए। जीवन और स्वच्छंदता का अधिकार नहीं लिया जा सकता।

– LGBT समुदाय को मौजूदा धारा-377 की वजह से सामाजिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा है। उनका सेक्शुअल रुझान अलग है और ये सवाल किसी की व्यक्तिगत इच्छा का नहीं बल्कि रुझान का है जो पैदा होने के साथ हुआ है।

– अनुच्छेद-21 के तहत मौलिक अधिकार का सुप्रीम कोर्ट संरक्षित करे। 2013 के फैसले के कारण समाज का एक वर्ग प्रभावित हुआ है और समाज पर इसका व्यापक असर हुआ है। समाज को हम दोषी नहीं मान रहे लेकिन समाज के सिद्धांत को संवैधानिक नैतिकता की कसौटी पर परखना होगा।

– सेक्शुअल नैतिकता को गलत तरीके से परिभाषित किया जा रहा है। जेंडर को सेक्शुअल ओरिएंटेशन के साथ मिक्स नहीं किया जा सकता। LGBT समुदाय के लोग समाज के दूसरे तबके की तरह ही हैं। सिर्फ उनका सेक्शुअल रुझान अलग है।

– ये सब पैदाइशी है। ये मामला जीन से संबंधित है और ये सब प्राकृतिक है, जिसने ऐसा रुझान दिया है। इसका लिंग से कोई लेना देना नहीं है। सुप्रीम कोर्ट को सिर्फ सेक्शुअल ओरिएंटेशन को डील करना चाहिए जो पैदाइशी है। सेक्शुअल ओरिएंटेशन बेडरूम से संबंधित है।

अपराध रहने देने की दलील देने वालों का तर्क

– सुरेश कुमार कौशल (जिनकी अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने धारा-377 की वैधता को बहाल किया था) ने मामले में कहा कि अगर धारा-377 के तहत दो बालिगों के बीच समलैंगिक संबंध को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया जाएगा तो इससे देश की सुरक्षा को खतरा हो जाएगा।

– आर्म्ड फोर्स जो परिवार से दूर रहते हैं वह अन्य जवानों के साथ सेक्शुअल ऐक्टिविटी में शामिल हो सकते हैं। इससे भारत में पुरुष वेश्यावृति को बढ़ावा मिलेगा।

केंद्र सरकार स्टैंड

– समलैंगिकता मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के विवेक पर इस बात को छोड़ते हैं कि वह खुद तय करे कि धारा-377 के तहत दो बालिगों के बीच सहमति से समलैंगिक संबंध अपराध के दायरे में रखा जाए या नहीं।

हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का फैसला

11 दिसंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने होमो सेक्शुऐलिटी मामले में दिए अपने ऐतिहासिक जजमेंट में समलैंगिकता के मामले में उम्रकैद तक की सजा के प्रावधान वाले कानून को बहाल रखा था। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया था जिसमें दो बालिगों द्वारा आपस में सहमति से समलैंगिक संबंध बनाए जाने को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद रिव्यू पिटिशन खारिज हुई और फिर क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल की गई जिसे संवैधानिक बेंच रेफर कर दिया गया। साथ ही नई अर्जी भी लगी जिस पर संवैधानिक बेंच ने सुनवाई की है।