आरक्षण से जुड़े फैसलों में एक नाम हर बार उभरता है और यह नाम है इंदिरा साहनी. 1992 में नरसिम्हा राव सरकार के अगड़ों को आरक्षण देने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देकर साहनी पूरे देश में चर्चित हो गई थीं. उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए ही सुप्रीम कोर्ट ने जातिगत आधार पर दिए जाने वाले आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय की थी.
साहनी अब एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती है. इस बार वह नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले को चुनौती दे सकती है. पेशे से वकील इंदिरा साहनी आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के फैसले को कोर्ट में चुनौती देने पर विचार कर रही हैं. लोकसभा में मंगलवार को सवर्णों को आरक्षण देने संबंधी संविधान संशोधन बिल को मंजूरी मिल गई. अब इस पर राज्य सभा में चर्चा हो रही है.
साहनी ने कहा कि इस फैसले से सामान्य श्रेणी के योग्य उम्मीदवारों को नुकसान होगा. उन्होंने कहा, ‘इस बिल को कोर्ट में चुनौती दी जाएगी. मैं अभी विचार करूंगी कि क्या मुझे इस बिल के खिलाफ याचिका डालनी चाहिए. इस बिल से आरक्षण की सीमा 60 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी और सामान्य वर्ग के योग्य उम्मीदवार पीछे छूट जाएंगे.’
1992 के फैसले को याद करते हुए साहनी ने बताया कि उन्होंने दिल्ली के झंडेवाला एक्सटेंशन इलाके में एक प्रदर्शन के बाद फैसले को चुनौती देने का मन बनाया. बकौल साहनी, ‘एक रैली चल रही थी. मैंने देखा कि स्कूल और कॉलेज के बच्चे सड़क पर उतरे हुए थे. दो दिन में मैंने याचिका डाल दी. लेकिन मुझे पता नहीं था कि इसमें इतना समय लगेगा.’
उन्होंने आगे बताया कि यह केस कई जजों की बैंच के सामने रहा और फिर जस्टिस वेंकटचलैया की अध्यक्षता वाली बैंच ने इस पर फैसला सुनाया.
साहनी ने बताया, ‘मीडिया में कोर्ट की कार्यवाही की खबरें लगातार आ रही थीं और सुनवाई काफी लंबे समय तक चली. सुनवाई दो जजों की बैंच के साथ शुरू हुई थी और फिर तीन जजों की बैंच, पांच जजों की बैंच, सात जजों की बैंच और आखिरकार नौ जजों की बैंच आई.’
बता दें कि नौ जजों की पीठ ने ही इस मामले में फैसला दिया था. इसमें कहा गया कि जातिगत आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. बैंच ने आर्थिक रूप से पिछड़ों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के आदेश को भी खारिज कर दिया.
साहनी ने इस बात पर सहमति दी कि वर्तमान सरकार की ओर से पेश किया गया बिल लागू होने पर योग्य उम्मीदवारों के पास केवल 40 फीसदी सीटें ही बचेंगी. उन्होंने कहा, ‘गरीब सवर्णों को आरक्षण देने का फैसला सही नहीं है. इससे जो उम्मीदवार मेरिट के आधार पर क्वालिफाई कर सकते हैं उनके पास केवल 40 प्रतिशत सीटें ही बचेंगी. वर्तमान आधी सीटें रिजर्व और आधी सामान्य के लिए होती है.’
साहनी का कहना है कि भविष्य के मामलों में भी 1992 का निर्णय बड़ी भूमिका निभाएगा. उन्होंने कहा कि आरक्षण को चुनौती देने के चलते उन्हें कभी भी विरोध नहीं झेला.