सावित्रीबाई फुले 122वीं पुण्यतिथि आज, जानिए उनकी उपलधियों के बारे में

सावित्री बाई फुले को भारत की पहली शिक्षिका होने का श्रेय जाता है। उन्होंने यह उपलब्धि तब हासिल की जब महिलाओं का शिक्षा ग्रहण करना तो दूर की बात थी, उनका घर से निकलना भी मुमकिन नहीं था। जब सावित्री बाई स्कूल जाती थीं, तो लोग उन्हें पत्थर मारते थे, उनके पति ज्योतिराव फुले की आलोचना भी करते थे। मगर उन्होंने हर मुश्किल का डटकर सामना किया। उनके पति ज्योतिराव ने भी पत्नी का पूरा सहयोग किया और उन्हें प्रोत्साहित किया। आज सावित्री बाई फुले की 122वीं पुण्यतिथि पर जानते हैं उनकी 10 उपलब्धियों के बारे में :

पति के साथ मिलकर सावित्रीबाई फुले ने 1848 में पुणे में लड़कियों का स्कूल खोला। इसे देश में लड़कियों का पहला स्कूल माना जाता है।

फुले दंपति ने देश में कुल 18 स्कूल खोले। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके योगदान को सम्मानित भी किया।

इस स्कूल में सावित्रीबाई फुले प्रधानाध्यापिका थीं। फातिमा शेख भी इस स्कूल में पढ़ाती थीं। ये स्कूल सभी जातियों की लड़कियों के लिए खुला था। दलित लड़कियों के लिए स्कूल जाने का ये पहला अवसर था।

लड़कियों को पढ़ाने की पहल के लिए सावित्रीबाई फुले को पुणे की महिलाओं का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा। जब वह स्कूल पढ़ाने जाती थीं तो पुणे की महिलाएं उन पर गोबर और पत्थर फेंकती थीं क्योंकि उन्हें लगता था कि लड़कियों को पढ़ाकर सावित्रीबाई धर्मविरुद्ध काम कर रही हैं। वह अपने साथ एक जोड़ी कपड़ा साथ लेकर जाती थीं और स्कूल पहुंचकर गोबर और कीचड़ से गंदे हो गए कपड़ों को बदल लेती थीं।

सावित्रीबाई ने अपने घर का कुआं दलितों के लिए भी खोल दिया। उस दौर में यह बहुत बड़ी बात थी।

सावित्रीबाई ने गर्भवती विधवाओं के लिए एक आश्रयगृह खोला, जहां वे अपना बच्चा पैदा कर सकती थीं। ये उन पर था कि वे उन बच्चों को पाले या न पालें। उस समय तक खासकर ऊंची जातियों की विधवाओं का गर्भवती हो जाना बहुत बड़ा कलंक था और इसलिए वे अपना बच्चा अक्सर फेंक देती थीं। सावित्रीबाई फुले ने उन बच्चों के लालन-पालन की व्यवस्था की। ऐसा ही एक बच्चा यशवंत फुले परिवार का वारिस बना।

उस समय तक विधवा महिलाओं के सिर के बाल मुंड़ने की व्यवस्था थी। सावित्रीबाई ने इस अमानवीय प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई और नाई बिरादरी के लोगों को संगठित करके पुणे में इस मुद्दे पर उनकी हड़ताल कराई कि वे विधवाओं का मुंडन नहीं करेंगे।

अपने पति ज्योतिबा फुले, जो तब तक महात्मा फुले कहलाने लगे थे, की मृत्यु के बाद उनके संगठन सत्यशोधक समाज का काम सावित्रीफुले ने संभाल लिया और सामाजिक चेतना का काम करती रहीं।

जाति और पितृसत्ता से संघर्ष करते उनके कविता संग्रह छपे। उनकी कुल चार किताबें हैं।

पुणे में प्लेग फैला तो सावित्रीबाई फुले मरीजों की सेवा में जुट गईं। इसी दौरान उन्हें प्लेग हो गया और 1897 में उनकी मृत्य हो गई।