सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला-विवादित जगह पर बनेगा राम मंदिर, दूसरी जगह बनेगी मस्जिद

नई दिल्‍ली: सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्‍या केस में ऐतिहासिक फैसला सर्वसम्‍मति यानी 5-0 से सुनाया है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्‍व में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि विवादित जमीन पर राम मंदिर बनेगा. विवादित जमीन रामलला को दी जाएगी. मुस्लिम पक्ष अपने साक्ष्यों से यह सिद्ध नहीं कर पाए कि विवादित भूमि पर उनका ही एकाधिकार था. मुस्लिम पक्ष को अयोध्‍या में किसी अन्‍य जगह मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ जमीन दी जाएगी. इलाहाबाद हाई कोर्ट के जमीन के बंटवारा का आदेश गलत था.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार 3 महीने के भीतर एक स्‍कीम बनाकर एक ट्रस्ट का गठन करेगी जो मंदिर बनवायेगा. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि इससे जुड़ी जो बाकी याचिकाएं हैं, वो खारिज की जाती हैं. CJI ने रामलला के वकील के पराशरण और सी एस वैद्यनाथन, हरिशंकर जैन की सराहना की.

कोर्ट ने शिया वक्‍फ बोर्ड की याचिका खारिज कर दी. चीफ जस्टिस ने कहा कि मीर बाकी ने बाबर के वक्‍त बाबरी मस्जिद बनवाई थी. 1949 में दो मूर्तियां रखी गईं. बाबरी मस्जिद को गैर-इस्‍लामिक ढांचे पर बनाया गया. बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी. पुरातत्‍व विभाग (ASI) की रिपोर्ट से साबित होता है कि मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनाई गई थी. ASI की रिपोर्ट को खारिज नहीं किया जा सकता. खुदाई में इस्‍लामिक ढांचे के सबूत नहीं मिले. अंग्रेजों के आने से पहले राम चबूतरे की पूजा हिंदू करते थे.

कोर्ट ने कहा कि हिंदुओं की ये आस्था कि श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ है, इस पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि 1885 से पहले राम चबूतरे पर हिंदुओं का अधिकार था. अहाते और चबूतरे पर हिंदुओं का अधिकार साबित होता है. 18वीं सदी तक नमाज पढ़े जाने के सबूत नहीं हैं. सीता रसोई की भी पूजा अंग्रेजों के आने से पहले हिंदू करते थे.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में विवादित जमीन को तीन हिस्‍सों में बांटने का जो फैसला दिया वो तार्किक नहीं था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्मोही अखाड़े का सूट मेनटेबल नहीं है. यह ‘सेवियत’ राइट के खिलाफ है. उन्हें शेबेट के अधिकार प्राप्त नहीं हैं. देवता न्यायिक व्यक्ति होता है. मूर्ति भी न्यायिक व्यक्ति होती है. मुस्लिम गवाहों ने भी माना कि दोनों पक्ष पूजा करते थे. सुन्नी वक्फ बोर्ड विवादित क्षेत्र पर अपना मालिकाना हक और प्रतिकूल कब्जा साबित करने में नाकाम रहा है.

सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष की क्‍या थीं दलीलें:

– मन्दिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई

हिंदू पक्ष ने नक्शों, तस्वीरों और पुरातात्विक सबूतों के जरिये ये साबित करने की कोशिश की थी कि विवादित ढांचा बनने से पहले वहां भव्य मन्दिर था. मन्दिर को ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण कराया गया था. कोर्ट में पेश किए फोटोग्राफ के जरिये कहा गया था कि विवादित इमारत हिंदू मंदिर के 14 खंभों पर बनी थी. इन खंभों में तांडव मुद्रा में शिव, हनुमान कमल और शेरों के साथ बैठे गरुड़ की आकृतियां हैं.

विवादित जगह पर दो हज़ार साल पहले भी मन्दिर

हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि विवादित स्थान पर आज से 2 हज़ार साल पहले भी भव्य राम मंदिर था. मंदिर के ढांचे के ऊपर ही विवादित इमारत को बनाया गया था. प्राचीन मंदिर के खंभों और दूसरी सामग्री का इस्तेमाल भी विवादित ढांचे के निर्माण में किया गया.

– श्रीराम जन्मस्थान को लेकर अटूट आस्था

हिंदू पक्ष की ओर से कहा गया था कि जिस जगह का यहां मुकदमा चल रहा है. करोड़ों लोगों की आस्था है कि वही भगवान राम का जन्म स्थान है. सैकड़ों साल से यहां पूजा-परिक्रमा की परंपरा रही है. करोड़ों लोगों की इस आस्था को पहचानना और उसे मान्यता देना कोर्ट की ज़िम्मेदारी है.

– रामलला की मूर्ति रखे जाने से बहुत पहले से श्रीराम की पूजा

विवादित ढांचे के मूर्ति रखे जाने बहुत पहले से ही राम की पूजा होती रही है. किसी जगह को मंदिर के तौर पर मानने के लिए वहां मूर्ति होना ज़रूरी नहीं है. हिन्दू महज किसी एक रूप में ईश्वर की आराधना नहीं करते. केदारनाथ मंदिर में शिला की पूजा होती है. पहाड़ों की भी देवरूप में पूजा होती है. चित्रकूट में होने वाली परिक्रमा का उदाहरण दिया गया था.

– इस्लामिक सिद्धान्तों के मुताबिक भी विवादित ढांचा वैध मस्जिद नहीं

हिंदू पक्ष ने इस्लामिक नियमों का हवाला देकर ये साबित करने की कोशिश की थी कि विवादित ढांचा मस्जिद नहीं हो सकती. कहा गया था कि किसी धार्मिक स्थान के ऊपर जबरन बनाई गई. इमारत शरीयत के हिसाब से भी मस्ज़िद नहीं मानी जा सकती.

उस इमारत में मस्ज़िद के लिए ज़रूरी तत्व भी नहीं थे. इस्लामिक विद्वान इमाम अबु हनीफा का कहना था कि अगर किसी जगह पर दिन में कम से कम दो बार नमाज़ पढ़ने के अज़ान नहीं होती तो वो जगह मस्ज़िद नहीं हो सकती. विवादित इमारत में 70 साल से नमाज नहीं पढ़ी गई है. उससे पहले भी वहां सिर्फ शुक्रवार को नमाज हो रही थी.

रामलला विराजमान और श्रीरामजन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति का दर्ज़ा

हिंदू पक्ष ने श्रीरामजन्मस्थान को भी न्यायिक व्यक्ति होने के समर्थन में दलीलें रखीं थी. कहा था कि पूरा रामजन्मस्थान ही हिंदुओं के लिए देवता की तरह पूजनीय है. किसी जगह को मन्दिर साबित करने के लिए मूर्ति की मौजूदगी ज़रूरी नहीं है, बल्कि लोगों की आस्था, विश्वास ही किसी जगह को मन्दिर बनाते हैं. श्रीरामजन्मस्थान को लेकर तो लोगों की आस्था सदियों से अटूट रही है. मंदिर में विराजमान रामलला कानूनी तौर पर नाबालिग का दर्जा रखते हैं. नाबालिग की संपत्ति किसी को देने या बंटवारा करने का फैसला नहीं हो सकता.

पुरातत्व सबूतों, धार्मिक ग्रंथों, विदेशी यात्रियों के लेख का हवाला

हिंदू पक्षकारों की ओर मन्दिर की मौजूदगी को साबित करने के लिए पुरातत्व सबूतों, धार्मिक ग्रंथों, विदेशी यात्रियों के लेख और पुरातात्विक सबूतों, राजस्व विभाग के रिकॉर्ड का हवाला दिया गया था. इसके अलावा हिंदू पक्ष ने विवादित जगह पर मन्दिर की मौजूदगी को साबित करने के लिए अयोध्या जाने वाले विदेशी यात्रियों जोसेफ टाइफेनथेलर, मोंटगोमरी मार्टिन के यात्रा संस्मरणों, डच इतिहासकर हंस बेकर और ब्रिटिश टूरिस्ट विलियम फिंच की पुस्तकों का भी हवाला दिया था.

– 12वीं सदी का शिलालेख

सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष ने अहम सबूत के तौर पर 12वीं सदी के शिलालेख का हवाला दिया था. हिन्दू पक्ष की ओर से पेश वकील ने कहा कि पत्थर की जिस पट्टी पर संस्कृत का ये लेख लिखा है. उसे विवादित ढांचा विध्वंस के समय एक पत्रकार ने गिरते हुए देखा था. इसमें साकेत के राजा गोविंद चंद्र का नाम है. साथ ही लिखा है कि ये विष्णु मंदिर में लगी थी.

आठवीं सदी के ग्रंथ स्कंद पुराण का हवाला

हिंदू पक्ष ने अपनी दलील के समर्थन में आठवीं सदी के ग्रंथ स्कंद पुराण का हवाला दिया था. उन्होंने कहा था कि बाबरी मस्जिद के 1528 में वजूद में आने से बहुत पहले स्कंद पुराण लिखा गया था. इस पुराण में भी अयोध्या का श्रीरामजन्मस्थान के रूप में जिक्र है और हिंदुओं का ये अगाध विश्वास रहा है कि यहां दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति होती है.

– विवादित ढांचे के नीचे ईदगाह नहीं

हिंदू पक्ष ने विवादित ढांचे के नीचे ईदगाह होने की मुस्लिम पक्ष की वकील मीनाक्षी अरोड़ा की दलीलों को खारिज कर दिया था. हिंदू पक्ष की ओर से कहा गया था कि जिसे मुस्लिम पक्ष ईदगाह की दीवार बता रहा है, उसके ऊपर छत होने के भी सबूत मिले है.ईदगाह पर छत नही होती. वहां सिर्फ एक दीवार नहीं, बल्कि हॉलनुमा ढांचा था.

– बाबर जैसे आक्रमणकारी को गौरवशाली इतिहास ख़त्म करने की इजाजत नहीं

बाबर जैसे विदेशी आक्रमणकारी को हिंदुस्तान के गौरवशाली इतिहास को ख़त्म करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती. अयोध्या में राम मंदिर को विध्वंस कर मस्जिद का निर्माण एक ऐतिहासिक ग़लती थी,जिसे सुप्रीम कोर्ट को अब ठीक करना चाहिए.अकेले अयोध्या में ही 50-60 मस्जिद हैं, मुसलमान किसी और मस्जिद में भी इबादत कर सकते हैं, पर हिन्दुओं के लिए तो ये जगह उनके आराध्य श्रीराम का जन्मस्थान है, हम ये जगह नहीं बदल सकते.

आठवीं सदी के ग्रंथ स्कंद पुराण का हवाला

हिंदू पक्ष ने अपनी दलील के समर्थन में आठवीं सदी के ग्रंथ स्कंद पुराण का हवाला दिया था. उन्होंने कहा था कि बाबरी मस्जिद के 1528 में वजूद में आने से बहुत पहले स्कंद पुराण लिखा गया था. इस पुराण में भी अयोध्या का श्रीरामजन्मस्थान के रूप में जिक्र है और हिंदुओं का ये अगाध विश्वास रहा है कि यहां दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति होती है.

– विवादित ढांचे के नीचे ईदगाह नहीं

हिंदू पक्ष ने विवादित ढांचे के नीचे ईदगाह होने की मुस्लिम पक्ष की वकील मीनाक्षी अरोड़ा की दलीलों को खारिज कर दिया था. हिंदू पक्ष की ओर से कहा गया था कि जिसे मुस्लिम पक्ष ईदगाह की दीवार बता रहा है, उसके ऊपर छत होने के भी सबूत मिले है.ईदगाह पर छत नही होती. वहां सिर्फ एक दीवार नहीं, बल्कि हॉलनुमा ढांचा था.

– बाबर जैसे आक्रमणकारी को गौरवशाली इतिहास ख़त्म करने की इजाजत नहीं

बाबर जैसे विदेशी आक्रमणकारी को हिंदुस्तान के गौरवशाली इतिहास को ख़त्म करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती. अयोध्या में राम मंदिर को विध्वंस कर मस्जिद का निर्माण एक ऐतिहासिक ग़लती थी,जिसे सुप्रीम कोर्ट को अब ठीक करना चाहिए.

सुन्नी वक्फ बोर्ड को दावा करने का हक़ नहीं

मुस्लिम पक्ष की ओर से दलील दी गई थी कि 1949 में विवादित इमारत में रामलला की मूर्ति पाए जाने के बाद 12 साल तक दूसरा पक्ष निष्क्रिय बैठा रहा. सुन्नी वक्फ बोर्ड ने 1961 में जाकर मुकदमा दायर किया. ऐसे में केस दायर करने की समयसीमा पार करने के चलते उन्हें कानूनन दावा करने का हक नहीं.

– अंग्रेजों के आने के बाद मुस्लिमों को शह मिली

हिंदू महासभा की ओर से विष्णु शंकर जैन ने कहा था कि 1528 से लेकर 1855 तक वहां मस्जिद की मौजूदगी को लेकर कोई मौखिक/दस्तावेजी सबूत नहीं. अंग्रेजों के आने के बाद से विवाद की शुरुआत हुई. हिंदुओं से पूजा का अधिकार छीन गया, मुसलमानों को विवादित ज़मीन पर शह मिली.

– मुस्लिम गवाहों के बयान का हवाला

हिंदू पक्ष ने अपनी दलीलों के समर्थन में इलाहाबाद हाई कोर्ट में मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश कई मुस्लिम गवाहों के बयान के हिस्सों का भी हवाला दिया था.रामलला के वकील वैद्यनाथन ने कहा था कि इन मुस्लिम गवाहों ने ख़ुद माना है कि जिस जगह को मुस्लिम लोग बाबरी मस्जिद कहते हैं वो हिन्दुओं द्वारा जन्मभूमि के तौर पर जानी जाती है और यहां सदियों से पूजा-परिक्रमा की भी परंपरा रही है.

सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की क्‍या थीं दलीलें:

– मस्जिद का कोई तय डिजाइन ज़रूरी नहीं

मुस्लिम पक्ष के वकील निजाम पाशा ने कहा था कि बाबरी मस्ज़िद की वैधता पर सवाल उठाने वाली हिंदू पक्ष की दलीलें ग़लत हैं. बिना किसी मीनार के या बिना वजूखाने के भी मस्जिद हो सकती है. मस्जिद के डिजाइन का शरिया से सीधा कोई वास्ता नहीं है. क्षेत्र विशेष के वास्तु शिल्प के आधार पर मस्जिद बनाई जाती रही है. ये देखना होगा कि लोग क्या मानते हैं. क्या बाबरी मस्जिद में वजू करने की व्यवस्था थी या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इस्लाम में घर से भी वजू करके मस्जिद आने की परम्परा रही है.

निर्मोही होकर भी सम्पति से मोह

विवादित ज़मीन पर निर्मोही अखाड़े के दावों को लेकर निज़ाम पाशा ने दिलचस्प दलील दी थी. पाशा ने कहा था कि निर्मोही का मतलब है कि जो मोह से परे हो, जिसे सम्पतियों से लगाव न हो, वो निर्मोही कहलाता है. लेकिन अखाड़ा उसी (सम्पति) के लिए क़ानूनी लड़ाई लड़ रहा है.

श्री रामजन्म स्थान को न्यायिक व्यक्ति का दर्जा नहीं

मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा था कि मैं ये मान लेता हूं कि श्री राम ने वहां जन्म लिया लेकिन क्या इतना भर होने से श्रीराम जन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति का दर्जा (जीवित व्यक्ति मानकर उनकी ओर से मुकदमा दायर) दिया जा सकता है.1989 से पहले किसी ने श्री रामजन्म स्थान को न्यायिक व्यक्ति नहीं माना. राजीव धवन ने अपनी दलीलों के जरिये श्री रामजन्म स्थान को न्यायिक व्यक्ति का दर्जा देने पर सवाल उठाते हुए कई उदाहरण दिये. कहा था कि श्री गुरु ग्रंथ साहब जी को जब तक गुरुद्वारा में प्रतिष्ठित नहीं किया जाता, तब तक उन्हें भी ‘न्यायिक व्यक्ति’ नहीं माना जा सकता. इसी तरह हर मूर्ति को न्यायिक व्यक्ति का दर्जा नहीं दिया जा सकता.

श्रीराम और अल्लाह दोनों का सम्मान होना चाहिए

राजीव धवन ने कहा था कि श्री राम का सम्मान होना चाहिए, इसमे कोई संदेह नहीं है.लेकिन भारत जैसे महान देश में अल्लाह का भी सम्मान है. अगर दोनों का सम्मान कायम नहीं रहता है, तो विविधिता को समेटे ये देश खत्म हो जाएगा. धवन ने कहा था कि ये साफ है कि राम चबूतरे पर प्रार्थना होती थी, लेकिन पूरे इलाके में कभी पूजा नहीं की गई. राजीव धवन ने हिंदू पक्ष के द्वारा परिक्रमा के संबंध में गवाहों द्वारा दी गई गवाहियों का हवाला दिया था. धवन ने कहा था कि परिक्रमा के बारे में सभी गवाहों ने अलग बात कही है. उनकी गवाही में विरोधाभास है.

हमारा केस समयसीमा का उल्लंघन नहीं करता

मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा था कि हमने 18 दिसंबर 1961 को केस दायर किया. हिंदू पक्ष के मुताबिक लिमिटेशन के लिहाज से हम दो दिन देरी से थे. लेकिन हमारे केस में लिमिटेशन की समयसीमा 16 दिसंबर से भला क्यों शुरू होगी. ये समय सीमा तो 22-23 दिसंबर से शुरू होनी चाहिए, क्योंकि उसी रात वहां मूर्तियां रखी गई थी. मुझे ये साबित करने की ज़रूरत नहीं कि 17, 18, 19 दिसंबर तक हमारा वहां कब्ज़ा रहा क्योंकि 22 दिसंबर से पहले वहां पर कोई गतिविधि नहीं थी .राजीव धवन ने कहा कि क्या बादशाह (बाबर) ने कुरान/धर्म का उल्लंघन किया. इसको संविधान की कसौटी पर ही परखा जाएगा.

क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्तां बनता गया

राजीव धवन ने जिरह ख़त्म करते हुए कहा था कि भारत विविधता का देश रहा है, लेकिन कुछ लोग इसे एक रंग में रंग देना चाहते है. धवन ने अपनी जिरह का अंत फ़िराक़ गोरखपुरी के इस शेर से किया था-“सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के ‘फ़िराक़’ क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया.”