21 जनवरी को लगने वाला है साल का पहला चंद्रग्रहण

21 जनवरी को पड़ने वाले साल के पहले चंद्रग्रहण पर चांद का अद्भुत नजारा देखने को मिलेगा। हालांकि इस चंद्रग्रहण का दीदार भारत में नहीं हो पाएगा, इसके बावजूद इसके बारे में काफी लोग जान चाहते हैं। इसका कारण है इसका नाम। इस दिन निकलने वाले चांद को सुपर ब्लड वोल्फ मून कहा जा रहा है।

आने वाले सोमवार को पड़ने वाला ग्रहण मध्य प्रशांत महासागर, उत्तरी/दक्षिणी अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका में दिखाई देगा, जबकि भारत में यह ग्रहण दिखाई नहीं देगा। भारतीय समयानुसार, यह ग्रहण रात 08:07:34 से अगले दिन 13:07:03 बजे तक रहेगा। पिछला पूर्ण चंद्र ग्रहण साल 2018 में 27 जुलाई को पड़ा था, जो 1 घंटा 43 मिनट तक चला था।

नासा के मुताबिक सुपर मून या फुल या न्यू मून पर चंद्रमा अन्य दिनों के मुकाबले धरती के सबसे करीब 3,63,000 किमी दूर होता है। सुपर मून पर चंद्रमा आम दिनों के मुकाबले 14 फीसदी बड़ा और 30 फीसदी अधिक चमकदार होता है। इस दौरान चांद का रंग लाल तांबे जैसा नजर आता है, इसलिए इसे ब्लड मून भी कहा जाता है।

ग्रहण के दौरान चंद्रमा का रंग इसलिए बदलता है क्योंकि सूरज की रोशनी धरती से होकर चंद्रमा पर पड़ती है। धरती की छाया की वजह से चंद्रमा का रंग ग्रहण के दौरान बदल जाता है। ग्रहण के दौरान या चंद्रमा को विभिन्न नामों से नवाजा जाता है। आइए जानते हैं इसके पीछे के कारण और बदलाव की वजह के बारे में

पूर्णिमा

धरती अपनी धुरी पर घूमती है और चंद्रमा इसके चक्कर लगाता है। इस दौरान जब उस पर सूरज की पूरी रोशनी पड़ती है, तो वह रोज से अधिक चमकीला नजर आता है।

सुपर मून

सुपरमून एक खगोलीय घटना है, जिसमें चांद, पृथ्वी के सबसे नजदीकी स्थिति में आ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी से चाँद सामान्य दिखने वाले आकार से अधिक बड़ा दिखाई देता है। इसे सुपर मून कहते हैं।

माइक्रो मून

जब चंद्रमा धरती से सर्वाधिक दूरी पर होता है, उसे माइक्रो मून कहते हैं। साधारण शब्दों में कहें तो, यह सुपर मून का उलटा होता है।

ब्लू मून

अंग्रेजी में कहावत है once in blue moon, जिसका मतलब दुर्लभ बात या घटना से होता है। खास बात यह है कि इस दौरान चंद्रमा का रंग नीला नहीं होता है। आमतौर पर चंद्रमा की साइकिल 15 दिन की होती है, जिससे एक माह में एक अमावस्या और एक पूर्णिमा होती हैं। मगर किसी माह में जब दो पूर्णिमा होती हैं, उसे ब्लू मून कहते हैं। चंद्रमा का रंग नीला तब होता है, जब आसमान में एक खास अनुपात में नीली आभा देने वाले कण मौजूद होते हैं।

ब्‍लड मून

चंद्र ग्रहण के दौरान सूरज और चांद के बीच पृथ्वी आ जाती है। इस कारण चांद पर पूरी रोशनी नहीं पड़ पाती। सूरज की हल्की रोशनी पड़ने के कारण चांद हल्का लाल हो जाता है। धीरे-धीरे चांद पृथ्वी के ठीक पीछे पहुंचता है और उसका रंग गहरा हो जाता है। इससे चांद ग्रहण लगने पर भी काला नहीं बल्कि तांबे के रंग जैसा नारंगी या गहरा लाल दिखता है। इसके रंग के कारण इसे ब्लड मून कहा जाता है।

सुपर ब्ल्ड वोल्फ मून

प्राचीन अमेरिकी जनजातीय संकृति में साल की पहली पूर्णिमा को वोल्फ मून कहा जाता था। इसके आधार पर जनवरी में पड़ने वाली पूर्णिमा और उस दिन के चांद का धरती के करीब होने के कारण इसे यह नाम दिया जा रहा है।