History of Teachers Day: क्यों मनाया जाता है शिक्षक दिवस, कौन थे डॉक्टर राधाकृष्णन

कहा गया है कि शिक्षा विहीन मनुष्य अपूर्ण होता है। अब जाहिर है कि शिक्षा अगर इतनी अहम है तो इसे प्रदान करने वाला यानी शिक्षक कितना महत्वपूर्ण है। शिक्षक के कंधों पर समाज के भविष्य को संवारने, निखारने और उसे सदमार्ग पर ले जाने की जिम्मेदारी होती है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में तो शिक्षक को ईश्वर समान ही बताया गया है। संस्कृत का यह श्लोक देखिए…. गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः, गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः।इसका अर्थ है गुरु ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश है। इसलिए मैं उनको प्रणाम करता हूं।

शिक्षक दिवस 5 सितंबर को ही क्यों।

राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ। राधाकृष्ण बहुत होनहार छात्र थे। कहा जाता है कि उनके पिता अपने इस बेटे को अंग्रेजी नहीं सीखने देना चाहते थे। पिता की कोशिश थी कि पुत्र पुरोहित (मंदिर का पुजारी) बने। बहरहाल, राधाकृष्णन ने तिरुपति और वेल्लोर में उच्चशिक्षा हासिल की। बाद में उनका पूरा जीवन शिक्षा को ही समर्पित हो गया। वो मैसूर, कोलकाता, ऑक्सफोर्ड और बाद में शिकागो भी शिक्षा विशेषज्ञ के तौर पर गए। उस दौर में शिक्षा पर व्याख्यान के लिए किसी भारतीय का विदेश में आमंत्रित किया जाना बहुत गौरावान्वित करने वाला होता था। राधाकृष्णन को ब्रिटिश सरकार ने सर की उपाधि से सम्मानित किया था। 1954 में इस महान शिक्षाविद को भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया। 1962 में भारत सरकार ने डॉक्टर राधाकृष्णन के जन्मदिवस 5 सितंबर को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा की। तब से हम पांच सितंबर को शिक्षक दिवस मनाते हैं।