Pitambara Mata : मां बगलामुखी के तीन बड़े मंदिर, जानिए दतिया में माता पीतांबरा माई से जुड़ी मान्यताएं


hdnlive | स्वामीनाथ शुक्ल
अमेठी। मान्यता है कि दतिया की माता पीतांबरा (Datia mata Pitambara) राजसत्ता की देवी (rajsatta ki devi) है। जिससे श्रद्धालु इनके दरबार में दर्शन पूजन के लिए आते हैं। माता के दरबार में सबसे ज्यादा संख्या राजसत्ता पाने के लिए नेताओं की और फिल्मी हस्तियों की होती है। माता को चमत्कारी देवी (mirical God) भी कहा जाता है। जिससे इस दरबार में सभी मनोकामनाएं चटपट पूरी हो जाती है। देश के कोने-कोने से माता के भक्त चौखट पर माथा टेकने आते हैं।

राजसत्ता की देवी,तीन एतिहासिक मंदिर

WhatsApp Image 2023 04 23 at 9.23.30 PM

माता पीतांबरा पीठ के चंद्रमोहन दीक्षित उर्फ चंद्रा गुरु ने बताया कि राजसत्ता की देवी है। चंद्रा गुरु ने बताया कि माता के 108 नाम है। इनके नाम का 40 दिन जप करने से बड़े बड़े काम बनते हैं।भारत में बगलामुखी के तीन एतिहासिक मंदिर माने जाते हैं। कांगड़ा हिमाचल प्रदेश(Kangra Himachal Pradesh), दतिया और नलखेड़ा मध्यप्रदेश (Datia and Nalkheda Madhya Pradesh) में है। माता पीतांबरा देवी का प्राकट्य गुजरात में सौराष्ट्र (Gujarat, Saurashtra ) क्षेत्र माना जाता है। कहते हैं कि इनका प्राकट्य हल्दी देश के जल से हुआ था।

पीले रंग की मिठाई और पीले वस्त्र का बहुत महत्व है

WhatsApp Image 2023 04 23 at 9.34.42 PM

हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें माता पीतांबरा कहा जाता है। यहां पर पीले रंग की मिठाई और पीले वस्त्र का बहुत महत्व है। शनिवार को दर्शन पूजन करने का विशेष मान्यता है।चंद्रा गुरु ने बताया कि इस मंदिर की स्थापना 1935 में तेजस्वी स्वामी ने किया था। इसके पहले देवी के होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता है। तेजस्वी स्वामी की प्रेरणा से ही मंदिर में चतुर्भुज रूप में माता पीतांबरा के मूर्ति की स्थापना हुई है। चतुर्भुजी देवी के एक हाथ में गदा दुसरे हाथ में पाश तीसरे हाथ में बज्र और चौथे हाथ में दैत्य की जीभ है।

धूमावती देवी का मंदिर

बगलामुखी देवी का दर्शन एक छोटी खिड़की से होता है। इन्हें छूने की इजाजत नहीं है। माता का श्रृंगार पीले वस्त्रों से किया जाता है।भोग पीले रंग के मिष्ठान से लगता है। माता पीतांबरा के मंदिर में एक तरफ माता धूमावती देवी का मंदिर है। देवी सफेद मैली साड़ी बिखरे बिखरे घने एवं खुले खुले बाल में कौंवे के ऊपर बैठी है। इन्हीं माता को धूमावती देवी कहा जाता है। महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा के लिए धूमावती देवी की पूजा अर्चना करती है। इनकी आरती के जल को भक्तों के ऊपर प्रसाद के रूप में छिड़का जाता है। जिससे आरती में बहुत भीड़ होती है।पीठ के संजेश कृष्ण शास्त्री भागवताचार्य ने बताया कि माता पीतांबरा के दरबार में मुंह मांगी मुराद पूरी होती है।माता को राजसत्ता की देवी माना जाता है। जिससे छोटे बड़े सभी चुनाव लडने वाले माता पीतांबरा के दरबार में ज्यादा आते हैं। बाकी माता के दरबार में देश के कोने-कोने भक्त आते हैं।