संधीस प्रकाशन ने किया सपनों के आर-पार समेत तीन पुस्तकों का विमोचन

नई दिल्ली (Hdnlive)| दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय युवा केंद्र के एनडी तिवारी भवन में बुधवार को संधीस प्रकाशन की तीन किताबों (सपनों के आर-पार, कविता में मनुष्य और आजाद से पहले, आजादी के बाद) का पुस्तक विमोचन हुआ। इस अवसर पर दूरदर्शन के वरिष्ठ एंकर अश्विनी कुमार मिश्र, एएनआई के वरिष्ठ पत्रकार शैलेश यादव, लेखक व पत्रकार पंकज रामेन्दू, इंडियन मीडिया जर्नलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष बाला भास्कर, रामगोपाल यादव और प्रकाशक हरि कृष्ण यादव उपस्थित थे।आपको बता दें की  पुस्तक ‘ सपनों के आर-पार ’  के  लेखक श्रीशचंद्र मिश्र  है और दूसरी किताब ‘ कविता में मनुष्य ’ पुस्तक को जनसत्ता(jansatta) के एसोसिएट एडिटर सूर्यनाथ सिंह ने लिखा है। वहीं तीसरी किताब ‘ आजादी से पहले, आजादी के बाद ’ के लेखक वरिष्ठ पत्रकार राज खन्ना हैं।

पुस्तक  लोकार्पण  के मौके पर श्रीशचंद्र मिश्र की पुस्तक सपनों के आर-पार पर पंकज रामेन्दु, पत्रकार प्रतिभा शुक्ला, पारुल शर्मा, अश्विनी कुमार मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार मनोहर नायक समेत अन्य वक्ताओं ने अपने विचार प्रकट किए। वक्ताओं ने पुस्तक के महत्त्व को रेखांकित करते हुए बताया की हिंदी फिल्मों की समीक्षा के मामले में श्रीश चंद्र मिश्र की पुस्तक महत्वपूर्ण योगदान देती है। यह बताती है कि वास्तव में फिल्म समीक्षा होती कैसे हैं। साथ ही बताया की पुस्तक में भारतीय सिनेमा के हर दौर के विभिन्न पहलुओं की रोचक जानकारी दी गई है। किताब में फिल्म इतिहास, अभिनेताओं के अभिनय और उनके काम करने के तौरतरीकों, निर्माता निर्देशक की मेहनत, लगन के साथ फिल्म के व्यापार पर विस्तार से जानकारी दी है। फिल्म दुनिया में महिलाओं के बढ़ते प्रदर्शन पर विस्तार से लिखा गया है। श्रीशजी के साथ काम करने वाले और उनके लेखन से प्रभावित लोगों ने भी इस मौके पर अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा किए। कार्यक्रम में श्रीशजी की बेटी शुभ्रा मिश्र समेत परिवार के अन्य सदस्य मौजूद रहे। 

पुस्तक  सपनों के आरपार पर विशेष रूप से हुई  चर्चा

पुस्तक पर चर्चा करते हुए सूर्यनाथ सिंह ने कहा कि, “शुरुआती दौर में फिल्में देखना और उनमें काम करना अच्छी नज़रों से नहीं देखा जाता था। हालांकि आज ऐसा नहीं है। अब समय बदल गया है। छोटे-छोटे बच्चे भी फिल्मों के बारे में खूब बातें करते दिखाई देते हैं। वे कलाकारों के अभिनय से लेकर से लेकर फ़िल्मों की कहानियों पर टिप्पणी करते देखे जा सकतें हैं। युवा दर्शक छोटी-छोटी बातों को भी खूब पकड़ते हैं। जैसे कैमरे का क्या एंगल होना चाहिए, अभिनेता ने ठीक ढंग से फोन पकड़ा है या नहीं। वर्तमान समय में फिल्म के बारे में बहुत कुछ लिखा जा रहा है, लेकिन श्रीशजी ने उस दौर में लिखा, जब फिल्मों के बारे में बहुत कम लिखा जाता था। उनके पास तथ्यों और फिल्मों के किस्सों की भरमार होती थी। जैसे कंप्यूटर पर क्लिक करते ही जानकारी सामने आती है, उसी तरह श्रीशजी के पास में जानकारियों का भंडार होता था। श्रीशजी गानों के साथ-साथ उसके बनाने के दौरान हुए वाकयों का भी जिक्र अपने लेखों में करते रहते थे। इसके साथ फिल्म बनाने के दौरान फिल्म की कहानी, अभिनेताओ, अभिनेत्रियों और गीतकारों या फिर अन्य कलाकारों को लेने और बाहर करने के अनेकों किस्सों को श्रीशजी ने रोचक ढंग पुस्तक में स्थान दिया है” ।

पुस्तक ‘ सपनों के आरपार ’ लेखों पर आधरित

पंकज रामेन्दु ने बताया कि  , “पुस्तक ‘ सपनों के आरपार ’ लेखों पर आधरित हैं। शख्सियत वाले अध्याय में जिस लेख पर उनकी नजर अटकी वैसा लिखने वाले बहुत ही कम लोग मिलेंगे। मसलन, सदाशिव अमरापुरकर ने अर्धसत्य से शुरुआत की थी। उनकी कई फिल्में आईं, पर उन्होंने सड़क में महारानी की भूमिका जिस अंदाज में निभाई, वैसी शायद ही कोई और कलाकार निभा पाए”।

श्रीशजी ने इस लेख को जिस तरह लिखा है उससे पता चलता है कि लेखक फिल्म पर कितनी बारीकी से नजर रखता है। आजकल फिल्म समीक्षा के नाम पर केवल फिल्म की कहानी सुना दी जाती है, लेकिन फिल्म की तकनीक और अभिनय की बारीकियों को नहीं पकड़ा जाता है। पुस्तक में मौजूद तथ्य और फिल्मों पर गंभीर लेखन आपको सपनों के आरपार में देखने को मिलता है। पुस्तक में विश्वसनीय आंकड़ों के साथ-साथ रोचक किस्से और जानकारियां हर लेख में हैं। आम आदमी के नायक फारुख शेख पर लिखे लेख की शुरुआत बेहद गंभीर घटना सेकी गई है।

मुंबई में नवंबर 2008 में हुए आतंकवादी हमले के दौरान ताज होटल का एक कर्मचारी राजन कांबले मेहमानों को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने की कोशिश में आतंकवादियों की गोली का निशाना बन गया था। राजन परिवार में अकेला कमाने वाला था। उसके दो बच्चे थे। अथर्व तब दो साल का था। राजन उसे पायलट बनाना चाहते थे और बड़े बेटे रोहन के लिए उनकी ख्वाहिश थी कि वह सैन्य स्कूल में पढ़े। पर राजन की असामयिक मौत ने सब कुछ अस्त व्यस्त कर दिया। सपने दम तोड़ देते इससे पहले मदद के कुछ हाथ उठे। ताज होटल प्रबंधन द्वारा आर्थिक मदद के अलावा पढ़ाई पूरी करने के बाद रोहन को नौकरी देने का आश्वासन दिया। लेकिन दोनों भाइयों को बेहतर शिक्षा मिले उसके लिए एक गुमनाम हाथ सामने आया। एक व्यक्ति ने राजन कांबले के साहस और सपनों के बारे में अखबारों में पढ़ा। एक अंग्रेजी अखबार से संपर्क कर उसने दोनों बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाने की पेशकश की। शर्त यह कि कांबले परिवार को उसका नाम न बताया जाए। हर साल अखबार की तरफ से दोनों बच्चों की पढ़ाई पर होने वाले खर्च का ब्योरा उस व्यक्ति को भेजा जाता। वह उस रकम का चेक भिजवा देता। यह जाने बिना कि वह पैसा ठीक से खर्च हो भी रहा है या नहीं? यह सिलसिला तब थमा, जब उस गुमनाम मददगार का निधन हो गया। जरूरतमंद लोगों की मदद को प्रचार या लोकप्रियता के लिए कभी इस्तेमाल न करने वाले इस व्यक्ति का नाम था- फारूख शेख।

” पुस्तक के हर लेख की अपनी कहानी है ”

एएनआई के वरिष्ठ पत्रकार शैलेश यादव ने बताया कि सपनों के आरपार में फिल्म इतिहास के सौ सालों को संजोया गया है। पुस्तक के हर लेख की अपनी कहानी है। ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत को हम सभी गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर गाते हैं। इस गीत को कवि प्रदीप ने कैसे रचा। इसको श्रीशचंद्र मिश्र ने प्रदीप जी के साथ साक्षात्कार करते हुए रोचक ढंग से लिखा है। फिल्म कारोबार से जुड़े विभिन्न तथ्यों और हिंदी के अलावा दक्षिण भारत व क्षेत्रीय फिल्मों के व्यापार की जानकारी पुस्तक में दी गई है। अगर किसी को फिल्मों और फिल्मजगत के बारे में विस्तार से जानना है, तो इस पुस्तक को पढ़़ने के बाद कहीं और जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।