यही कोरोना का ‘पीक’

आजकल सरकार और नौकरशाहों ने कोरोना वायरस को लेकर एक अजीब-सी चुप्पी ओढ़ रखी है। हालांकि लगातार 12वें दिन औसतन 10 हजार या उससे ज्यादा संक्रमित मरीज सामने आ रहे हैं। सिर्फ आठ दिन में ही संक्रमण के आंकड़े तीन लाख को पार कर चार लाख से भी ज्यादा हो गए थे। अब पूरे आसार हैं कि इस माह के अंत तक संख्या पांच लाख को भी लांघ सकती है। अनुमान है कि ‘पीक’ शांत होने तक संक्रमण का आंकड़ा 20 लाख तक पहुंच सकता है। बहरहाल केंद्र सरकार और उसके विशेषज्ञ इस बढ़ती संख्या से न डरने के बयान जारी करते रहे हैं, लेकिन 23 जून तक सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय ने मात्र दो बार प्रेस को संबोधित किया है, जबकि अप्रैल माह में 26 बार प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई। तुलना करें, तो देश में कोरोना के प्रसार की मौजूदा स्थिति चिंताजनक बनी है।

यदि गति यही रही, तो भारत रूस को पीछे कर विश्व में तीसरे नंबर का सर्वाधिक संक्रमित देश होगा। लेकिन एम्स, दिल्ली के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया का मानना है कि कोरोना का ‘पीक’ आने वाला है। कुछ मायनों में तो यही कोरोना संक्रमण की ‘चरम’ स्थिति है। आश्चर्यजनक है कि करीब 80 फीसदी मामले कमजोर या बिना लक्षणों वाले मरीजों के हैं। नतीजतन संक्रमण के बाद स्वस्थ होने वालों का औसत करीब 56 फीसदी हो गया है। मंगलवार सुबह तक कुल संक्रमितों का आंकड़ा 4.40 लाख से ज्यादा था। उनमें से 2.48 लाख से ज्यादा ठीक होकर घर लौट चुके थे। लेकिन यही कोरोना वायरस के ‘पीक’ का पूर्ण सत्य नहीं है। डा. गुलेरिया मानते हैं कि देश की आबादी के मद्देनजर संक्रमण के ये आंकड़े भयावह नहीं हैं।

हमारी स्थिति दुनिया के कई बड़े देशों से बेहतर है, लेकिन मृत्यु-दर पर नियंत्रण रहना बेहद जरूरी है। बीते दिनों राज्यों के मुख्य सचिवों और स्वास्थ्य सचिवों से संवाद के दौरान कैबिनेट सचिव राजीव गौबा ने यह तथ्य पेश किया था कि करीब 82 फीसदी मौतें पांच राज्यों-महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश-में ही हुई हैं। इसके अलावा, 65 जिलों में मृत्यु-दर पांच फीसदी से ज्यादा रही है। यह राष्ट्रीय औसत 3.22 फीसदी से ज्यादा है। उस संवाद के बाद फोकस कोरोना से होने वाली मौतों पर टिक गया है। प्रेस के जरिए देश को खुलासा करने में क्या दिक्कत थी? क्या ‘पीक’ की आहट के साथ ही कोरोना एक गौण मुद्दा बन गया है? अभी तो ‘पीक’ के दौरान यह देखना शेष है कि देश में कितने मरीजों के लिए, अस्पतालों और अन्य केंद्रों में, हमारी तैयारियां और व्यवस्थाएं क्या हैं? वेंटिलेटर और ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा है अथवा नहीं? ‘पीक’ किस बिंदु पर जाकर थमेगा और संक्रमण कम होने लगेगा, अभी इसके अनुमान अलग-अलग हैं। संक्रमण-दर भी भिन्न है। अभी तो राजधानी दिल्ली का केस समझ से परे है कि उसके संक्रमण का आंकड़ा 62, 000 को पार कैसे कर गया है? यदि गति यही रही, तो वह मुंबई को पीछे छोड़ने में ज्यादा वक्त नहीं लगाएगा। मुंबई में करीब 67 हजार संक्रमित बताए जाते हैं और वहां के मामले लगातार कम हो रहे हैं।

मुंबई के सामने झुग्गी बस्ती धारावी के बजाय वहां की इमारतें बड़ा संकट हैं। वे 25 फीसदी संक्रमण के साथ नई हॉट स्पॉट बन गई हैं। राज्य के तौर पर दिल्ली अब देश में दूसरे स्थान पर है। तमिलनाडु पीछे छूट गया है। दिल्ली में मृत्यु-दर भी देश के औसत से ज्यादा है। कोरोना के कई सत्य सामने नहीं आ पा रहे हैं। जिन डॉक्टर, नर्सों, लैब सहायकों आदि स्वास्थ्य कर्मियों को सरकार और देश ने ‘कोरोना योद्धाओं’ के तौर पर सम्मानित किया था, आज उनके संक्रमण या मौत की खबरें भी हासिल नहीं हो पा रही हैं। तो ‘पीक’ के दौरान सही मूल्यांकन कैसे होगा? कोरोना अभी तक हमारी जिंदगी और चेतना में अंदर तक घुस गया है। कुछ आकलन किए गए हैं कि जुलाई में ‘पीक’ के शांत होने के बाद संक्रमण के आंकड़ों में भी कमी दिखाई देगी और सितंबर के प्रथम सप्ताह तक कोरोना का अस्तित्व नगण्य हो सकता है, लेकिन भरोसा किसी भी विश्लेषण पर नहीं किया जा सकता, क्योंकि कोरोना के दंश अभी देश प्रत्यक्ष तौर पर झेल रहा है।