अयोध्या मध्यस्थता : पैनल ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट, आज चर्चा कर सकती है संविधान पीठ

मध्यस्थता प्रक्रिया भाईचारे और समझदारी के माहौल में हुई। यही देश की रवायत है। सुप्रीम कोर्ट का भरोसा जताने के लिए शुक्रिया। – श्रीश्री रविशंकर, सदस्य मध्यस्थता पैनल

अयोध्या मामले में गठित मध्यस्थता पैनल ने बुधवार को सीलबंद लिफाफे में दूसरी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी। सूत्रों के मुताबिक, मुस्लिम पक्ष ने प्रस्ताव दिया है कि विवादित स्थल पर मंदिर बनाने की इजाजत दी जा सकती है। इस बीच, पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सदस्य बृहस्पतिवार को चैंबर में मिलेंगे। इस दौरान रिपोर्ट पर तथा इसे सार्वजनिक करने पर चर्चा हो सकती है। सूत्रों ने बताया, दोनों पक्ष पूजास्थल कानून-1991 के तहत समझौते के लिए राजी हैं। इसके तहत ऐसे किसी मस्जिद या धर्मस्थल को लेकर कोई विवाद नहीं होगा जो 1947 से पूर्व मंदिर गिराकर बनाए गए हैं। इस कानून के दायरे में अयोध्या विवाद नहीं है।

मुस्लिम पक्ष ने सुझाया कि सरकार विवादित जमीन का अधिग्रहण कर सकती है। बोर्ड एएसआई के अधिग्रहण वाली कुछ चुनिंदा मस्जिदों की सूची सौंप सकता है, जहां नमाज पढ़ी जा सके। सुन्नी बोर्ड के अध्यक्ष ने यह प्रस्ताव दिया है कि अगर राज्य सरकार अयोध्या में मस्जिद बनाने के लिए कोई और उचित जगह दे और पुरानी मस्जिदों का जीर्णोद्धार करवाए तो वह हिंदुओं को विवादित स्थल पर मंदिर बनाने की इजाजत दे सकते हैं।

सुन्नी बोर्ड इस मामले में मुस्लिम पक्षकारों का प्रतिनिधित्व कर रहा है लेकिन छह अन्य पक्षकार भी हैं। लिहाजा अन्य पक्षकारों का रुख देखना होगा। इस बीच, सुप्रीम सुनवाई से जुड़े एक वरिष्ठ वकील ने कहा कि सुनवाई पूरी होने के बाद ऐसी रिपोर्ट का औचित्य नहीं है।

सुन्नी वक्फ बोर्ड ने जमीन का दावा वापस लने वाली खबरों का किया खंडन

सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जफर फारुकी ने साफ किया कि अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर अपना दावा वापस लेने की टीवी चैनलों पर चल रहीं खबरें निराधार हैं। वक्फ बोर्ड की ओर से सुप्रीम कोर्ट में किसी भी तरह का हलफ नामा दाखिल नहीं किया गया है। सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मध्यस्थता पैनल में सेटलमेंट का प्रस्ताव जरूर दिया है लेकिन उसका खुलासा नहीं कह सकता। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव एवं बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक व मुस्लिम पक्ष के वकील जफरयाब जिलानी ने भी साफ किया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दावा वापस नहीं लिया है।

जफरयाब जिलानी ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में किसी भी तरह का हलफनामा दाखिल नहीं किया है, इससे बाबरी मस्जिद का दवा छोड़ने का सवाल ही पैदा नहीं होता। सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अगर मेडिएशन कमेटी के सामने किसी भी तरह का प्रस्ताव दिया है तो उसकी मुझे जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई पूरी हो चुकी है। चीफ जस्टिस 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं, इससे पहले ही फैसला आने की उम्मीद है। उन्होंने यह भी कहा मुस्लिम पक्ष के वकीलों की ओर से सबूतों के बुनियाद पर बहस की गई है, इससे हमारा पक्ष मजबूत है। फैसला मुस्लिम पक्ष में आने की पूरी उम्मीद है।

सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला हो, अमन कायम रहे

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यकारिणी सदस्य ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि आज ऐतिहासिक दिन था, जिसमें सबसे बड़े और संवेदनशील मामले की सुनवाई पूरी हुई है। हमारी आस्था सुप्रीम कोर्ट की न्याय प्रणाली पर है, उम्मीद है सुप्रीम कोर्ट का फैसला जो भी आएगा वह हक और इंसाफ की बुनियाद पर होगा। इस फैसले को लेकर देश के साथ ही दुनिया की निगाह भी लगी हुई है, हमारी देश की जनता से अपील है कि सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला हो अमन कायम रखें।

सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दावा वापस नहीं लिया है। बल्कि मध्यस्थता कमेटी के सामने एक सुझाव रखा है। कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई। अब एक महीने में किसी भी दिन फैसला सुना दिया जाएगा। लिहाजा दोनों समुदाय के लोग गंगा-जमुनी तहजीब को बनाए रखें और सम्मान के साथ फैसले को कबूल करें।

– मौलाना सैफ अब्बास, अध्यक्ष, मरकजी शिया चांद कमेटी

हमें उम्मीद है कि जल्द ही अयोध्या मामले का मुकम्मल हल निकलेगा। देश की जनता को देश की सर्वोच्च अदालत और संविधान पर पूरा भरोसा है। फैसला जो भी हो, हर भारतीय को उसका स्वागत करना चाहिए। जिसको देश के संविधान पर भरोसा नहीं उसको मुल्क में रहने का अधिकार नहीं है।

– मौलाना यासूब अब्बास, प्रवक्ता, आल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड

सुनवाई के अंतिम दिन सुन्नी वक्फ बोर्ड भले ही अपने स्टैंड से मुकर जाए, लेकिन बाबरी मस्जिद का मामला देश के करोड़ों मुसलमानों के दिलों से जुड़ा है। जहां तक फैसले का सवाल है, तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय अयोध्या मामले को लेकर जो भी फैसला देगा, वह हम सभी को मान्य होगा।

– मुफ्ती इरफान मियां फरंगी महली, काजी-ए-शहर

अयोध्या में राम मंदिर बनना तय है। शिया वक्फ बोर्ड कोर्ट में मंदिर निर्माण के लिए अपना शपथ पत्र दे चुका है। अब सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी बाबरी मस्जिद के पक्षकारों की लड़ाई लड़ने से मना कर दिया है, जो राम मंदिर बनने के लिए बड़ा संकेत है। हालांकि, सुन्नी वक्फ बोर्ड की शर्तों का अब कोई मतलब नहीं है।

– वसीम रिजवी, चेयरमैन, शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड

 40 दिन चली न्यायिक इतिहास की दूसरी सबसे लंबी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में 40 दिन चली जिरह के बाद सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया। सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ अब दशकों पुराने इस मामले का फैसला सुनाएगी।

इससे पहले सुबह जिरह शुरू होते ही सीजेआई ने कहा, अब किसी पक्षकार को और समय नहीं दिया जाएगा। बुधवार शाम पांच बजे तक सुनवाई पूरी करनी होगी। हालांकि सुनवाई एक घंटे पहले शाम चार बजे ही पूरी हो गई।

संविधान पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद शाम चार बजे फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट ने संबंधित पक्षों को ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ (राहत में बदलाव) के मुद्दे पर लिखित दलील दाखिल देने के लिए तीन दिन का समय दिया है। इसमें दोनों पक्षों की ओर से अपील के दौरान किए दावों पर आगे-पीछे होने की गुंजाइश देखी जाती है। हालांकि यह देखने वाली बात होगी कि मोल्डिंग ऑफ रिलीफ सिद्धांत किस हद तक लागू किया जा सकता है। पीठ ने स्पष्ट कर दिया है कि अब मौखिक बहस नहीं होगी। देर शाम सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी नोटिस में कहा गया है कि इस संविधान पीठ में शामिल सीजेआई सहित पांचों जज बृहस्पतिवार शाम पांच बजे चैंबर में मिलेंगे। इस संवेदनशील मामले पर 17 नवंबर के पहले फैसला आ सकता है। दरअसल, सीजेआई गोगोई उसी दिन सेवानिवृत्ति हो रहे हैं।

न्यायिक इतिहास की दूसरी सबसे लंबी सुनवाई

40 दिनों तक चली अयोध्या मामले की सुनवाई इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि यह सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में केशवानंद भारती मामले के बाद दूसरी लंबी सुनवाई थी। केशवानंद मामले में 68 दिन चली जिरह के बाद सुप्रीम कोर्ट की 13 सदस्यीय पीठ ने 31 अक्तूबर, 1972 को फैसला सुनाया था।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सुनवाई

संविधान पीठ अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर बांटने के आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट आदेश के खिलाफ सुनवाई कर रही है। शीर्ष कोर्ट ने हाईकोर्ट के 30 सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ 14 अपीलों सुनवाई की।

आखिरी दिन की बड़ी दलीलें

मुस्लिम पक्ष के पास मालिकाना हक का सुबूत नहीं: हिंदू पक्ष

रामलला विराजमान : मुस्लिम पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि मस्जिद बाबर ने बनवाई। हम वह जमीन मांग रहे हैं, जहां अवैध निर्माण हुआ था।

गोपाल सिंह विशारद : हिंदुओं ने पूजा का अधिकार पहले मांगा था, लेकिन मुस्लिम शासन में नहीं मिला। ब्रिटिश हुकूमत में थोड़ी राहत मिली। जन्मभूमि का महत्व कैलास मानसरोवर जैसा है। पूरा पर्वत बिना किसी प्रतिमा के पवित्र और पूजनीय है।

निर्वाणी अखाड़ा: हिंदुओं और रामलला को अधिकार मिलेगा तो हम सेवायत होंगे। मालिकाना हक का दावा नहीं किया। सेवा का अधिकार हमारा है।

निर्मोही अखाड़ा: मुस्लिम पक्ष दावा स्थापित करने में विफल रहा। बिना सुबूत सूट फाइल किया। हमने कभी मुस्लिमों को जमीन का हक नहीं दिया।

राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति : 16वीं सदी में आए विदेशी यात्रियों के वृत्तांत में मंदिर का जिक्र है पर मस्जिद का नहीं। मुस्लिम पक्ष के पास कब्जे का कोई सुबूत नहीं लेकिन हिंदू पक्ष के पास है।

हम बाबरी विध्वंश के पहले की स्थिति चाहते हैं:मुस्लिम पक्ष

शिया वक्फ बोर्ड : हमारा विवाद शिया बनाम सुन्नी बोर्ड का है। मस्जिद पर सुन्नियों का दावा नहीं है। वहां शिया मस्जिद थी, 1966 से हमें बेदखल किया गया। 1946 के दो फैसलों में से एक हमारे और दूसरा सुन्नी के पक्ष में था।

सुन्नी वक्फ बोर्ड : हिंदू पक्षकारों ने कुरान के हवाले से जो दलीलें दीं, वे आधारहीन हैं। हम अपनी जमीन पर कब्जा वापस चाहते हैं। छह दिसंबर, 1992 को जो नष्ट हुआ, वो हमारी संपत्ति थी। वक्फ संपत्ति का मतवल्ली ही रखरखाव का जिम्मेदार होता है।