एससी-एसटी ऐक्ट : कानून बनाना संसद का काम,सुप्रीम कोर्ट से केंद्र

SC-ST ऐक्ट को कथित तौर पर कमजोर बनाने वाले वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के दौरान गुरुवार को केंद्र ने कहा कि इस तरह की गाइडलाइंस जारी करना जुडिशल ऐक्टिविजम है। केंद्र की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दलील रखते हुए अटर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट कानून नहीं बना सकता, यह संसद का काम है। उन्होंने मामले को संवैधानिक बेंच में भेजने की मांग की।

केंद्र ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट कानून के गैप को भर सकता है लेकिन देशभर के लिए ऐसा गाइडलाइन नहीं जारी कर सकता जो कानून के तरह हों।

एजी ने कहा कि यह जु़डिशल ऐक्टिविजम है, कानून बनाना संसद का काम है। उन्होंने मामले को संवैधानिक बेंच में भेजने की दलील दी। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से अपने पिछले फैसले पर रोक लगाने की मांग की लेकिन कोर्ट ने स्टे से इनकार किया। मामले में अगली सुनवाई 16 मई को होगी।

बता दें कि सुभाष काशीनाथ महाजन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को एससी-एसटी ऐक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाने का आदेश दिया था। इसके अलावा एससी/एसटी ऐक्ट के तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत के प्रावधान को भी सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दी थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस कानून के तहत दर्ज मामलों में ऑटोमेटिक गिरफ्तारी की बजाय पुलिस को 7 दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे ऐक्शन लेना चाहिए। यही नहीं शीर्ष अदालत ने कहा था कि सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती। गैर-सरकारी कर्मी की गिरफ्तारी के लिए एसएसपी की मंजूरी जरूरी होगी।

क्या है सुभाष काशीनाथ महाजन मामला?
महाराष्ट्र सरकार में तकनीकी शिक्षा निदेशक डॉक्टर सुभाष काशीनाथ महाजन के खिलाफ एससी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले एक कर्मचारी ने शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में महाजन पर कर्मचारी ने अपने ऊपर कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के मामले में अपने दो जूनियर एंप्लॉयीज के खिलाफ कानूनी कार्रवाई पर रोक लगाने का आरोप लगाया था। याचिकाकर्ता का कहना था कि उन एंप्लॉयीज ने उन पर जातिसूचक टिप्पणी की थी।

गैर-अनुसूचित जाति के इन अधिकारियों ने उस व्यक्ति की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में उसके खिलाफ टिप्पणी की थी। जब मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी ने अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए जब उनके वरिष्ठ अधिकारी सुभाष काशीनाथ महाजन से इजाजत मांगी तो इजाजत नहीं दी गई। इस पर उनके खिलाफ भी पुलिस में मामला दर्ज कर दिया गया। बचाव पक्ष का कहना है कि अगर किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति के खिलाफ ईमानदार टिप्पणी करना अपराध हो जाएगा तो इससे काम करना मुश्किल जो जाएगा।

काशीनाथ महाजन ने एफआईआर खारिज कराने के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया था, लेकिन हाई कोर्ट से उन्हें राहत नहीं मिली। इसके बाद महाजन ने हाई कोर्ट के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। इस पर शीर्ष अदालत ने इस साल 20 मार्च को उन पर एफआईआर हटाने का आदेश देते हुए अनुसूचित जाति/जनजाति ऐक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक का आदेश दिया था। यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दे दी थी।

देशभर में हुए थे उग्र प्रदर्शन
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलित संगठनों ने 2 अप्रैल को भारत बंद बुलाया था और हिंसक प्रदर्शन किया था। भारत बंद के दौरान हुई हिंसा में 11 लोगों की मौत भी हुई थी। दलित संगठनों का आरोप था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से 1989 का अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम कमजोर पड़ जाएगा। इस ऐक्ट के सेक्शन 18 के तहत ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है। ऐसे में यह छूट दी जाती है तो फिर अपराधियों के लिए बच निकलना आसान हो जाएगा। इसके अलावा सरकारी अफसरों के खिलाफ केस में अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी को लेकर भी दलित संगठनों का कहना है कि उसमें भी भेदभाव किया जा सकता है।