चौपालः रोजगार की खातिर

श्रम और रोजगार मंत्रालय के आंकड़ों श्रम और रोजगार मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश की 65 फीसद आबादी नियमित रोजगार के अभाव से जूझ रही है। उसके मद्देनजर हमारी प्राथमिक कोशिश यह होनी चाहिए कि कैसे शिक्षा को कौशल व रोजगारपरक बनाया जाए? दूसरा, कृषि क्षेत्र में तात्कालिक राहत देने वाली कृषि ऋण माफ करने की परिपाटी से हमें उबरना होगा और दीर्घकालिक सुधारों को प्राथमिकता देनी होगी। दीर्घकालिक सुधारों में एक यह हो सकता है कि देश में ‘मांग आधारित’ खेती पर बल दिया जाए। लेकिन इसके लिए हमें अनुभवी पेशेवरों से लैस मार्केट इंटेलिजेंस यानी बाजार-बुद्धिमत्ता की जरूरत होगी जो समय रहते बता सके कि आने वाले महीनों में किस तरह की उपज की ज्यादा जरूरत होगी। देश में 127 जलवायु क्षेत्र हैं जिनमें आवश्यकतानुसार आराम से खेती की जा सकती है।

इसके अलावा खेती पर दबाव (59 फीसद आबादी निर्भर) कम करने के लिए कृषि संबंधी क्रियाओं जिसमें पशुपालन, वृक्षारोपण और बागवानी शामिल हैं, को तरजीह दिए जाने की सख्त आवश्यकता है। पर्यटन क्षेत्र में भी हर वर्ग को रोजगार देने की भरपूर संभावना है। यह समय की मांग है कि रोजगार संबंधी योजनाओं के क्रियान्वयन में प्रशासनिक मशीनरी स्वयं अपनी नैतिक जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में आगे बढ़े।

इसके अलावा पैंसठ फीसद निर्यात करने वाले लघु सूक्ष्म और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा और ‘स्किल इंडिया’ कार्यक्रम का विस्तार करते हुए हस्तशिल्प, कारपेंटरी, मशीनों की मरम्मत के लिए ट्रेनिंग जैसे नए कार्य शामिल कर रोजगार की संभावनाओं को तलाशा जा सकता है। देश के हर नागरिक को भी अपने स्तर पर किसी काम को छोटा समझने की सामंती मानसिकता से उबरने की कोशिश करनी चाहिए। तभी सही मायनों में भारत रोजगारयुक्त संवृद्धि की ओर अग्रसर और जनसांख्यिकीय लाभांश की सार्थकता सिद्ध कर सकेगा।