इस दिन से बरसाने में शुरू होगी लट्ठमार होली

भारत में होली का त्योहार सबसे बड़े त्योहारों में से एक है, जहां पूरे भारत में दो दिन की होली मनाई जाती है, वहीं मथुरा में इस होली की शुरुआत कई दिनों पहले से हो जाती है। आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के बरसाना कस्बे में खेली जाने वाली लट्ठमार होली का आयोजन 15 मार्च को होगा। जिसके जवाब में 16 मार्च को नन्दगांव में लट्ठमार होली मनाई जाएगी।

कैसे हुई लट्ठमार होली की शुरुआत…

बसराने की लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इस दिन नंदगांव के ग्वाल बाल होली खेलने के लिए राधा रानी के गांव बरसाने जाते हैं और मंदिरों में पूजा-अर्चना के पश्चात बरसाना गांव में होली खेलते हैं। इसके बाद अगले दिन दसवीं तिथि को लट्ठमार होली नंदगांव में खेली जाती है।

दरअसल इस परंपरा की शुरुआत द्वापर युग में श्रीकृष्ण की लीला की वजह से हुई। मान्यता है कि कृष्ण जी अपने सखाओं के साथ कमर में फेंटा लगाए राधारानी तथा उनकी सखियों से होली खेलने पहुंच जाते थे तथा उनके साथ ठिठोली करते थे जिस पर राधारानी और उनकी सखियां ग्वाल वालों पर डंडे बरसाया करती थीं। ऐसे में लाठी-डंडों की मार से बचने के लिए ग्वाल वृंद भी लाठी या ढालों का प्रयोग करते थे। यहीं परंपरा आज तक चली आ रही है।

ब्रज में सिर्फ लट्ठमार होली ही नहीं आकर्षण का केंद्र है, बल्कि इसके अलावा भी यहां होली खेलने के कई दिलचस्प तरीके हैं। आइए सभी तरीकों के बारे में जानते हैं कि आखिर क्यों मथुरा की होली को पूरे भारत में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है।

फूलों की होली: फागुन की एकादशी को वृंदावन में फूलों की होली मनाई जाती है। बांके बिहारी मंदिर में फूलों की ये होली सिर्फ 15-20 मिनट तक चलती है। शाम 4 बजे की इस होली के लिए समय का पाबंद होना बहुत जरूरी है। फूलों की होली में बांके बिहारी मंदिर के कपाट खुलते ही पुजारी भक्तों पर फूलों की वर्षा करते हैं।

विधवाओं की होली: वृंदावन में कई विधवाएं रहती हैं जो देश के अलग भागों से आई हैं। परिवार के लोग इन्हें यहां छोड़ देते हैं। रूढ़िवादी सोच में इन विधवाओं की होली से हर तरह का रंग खत्म कर दिया जाता है। कुछ ही साल पहले वृंदावन में विधवाओं की होली का चलन पागल बाबा के मंदिर से शुरू हुआ। अमूमन ये होली फूलों की होली के अगले दिन अलग-अलग मंदिरों में खेली जाती है। जीवन के रंगों से दूर इन विधवाओं को होली खेलते देखना बहुत सुंदर होता है।

बिहारी मंदिर में होली: वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में होली का जश्न दुनिया भर में चर्चित है। भक्त अपने भगवान के साथ होली खेलते हैं। मंदिर के कपाट खुलते ही श्रद्धालु अपने प्रभु पर रंग बरसाने के लिए टूट पड़ते हैं। इस होली में कई क्विंटल गुलाल और रंग बरसाया जाता है। इस होली के तुरंत बाद मथुरा में होली का जुलूस निकलता है। दोपहर 2 बजे से निकलने वाले इस जलसे में हिस्सा लेना एक दूसरी ही दुनिया का अनुभव है।

हुरंगा: दाऊ जी के मंदिर में होली के अगले दिन मनाया जाने वाला ये त्योहार 500 साल पुराना है। इस मंदिर के सेवादार परिवार की महिलाएं पुरुषों के कपड़े फाड़कर उनसे उन्हें पीटती हैं। इस परिवार में अब 300 से ज्यादा लोग हैं। ऐसे में ये त्योहार देखने वाला होता है। दाऊ जी का मंदिर मथुरा से 30 किलोमीटर दूर है। इसके साथ ही इस त्योहार में बेहद भीड़ होती है। इसलिए सुबह जल्दी पहुंचना जरूरी होता है।