सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद ईपीएस से ज्यादा पेंशन पाने के लिए निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को अपने पीएफ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कुर्बान करना होगा। इससे उनकी पेंशन तो कई गुना बढ़ जाएगी, लेकिन पीएफ की रकम घट जाएगी। हालांकि इसके बावजूद ये सौदा फायदे का सौदा होगा। क्योंकि गंवाए गए पीएफ की रकम से कभी भी उतना रिटर्न नहीं मिल सकता, जितना पेंशन के जरिए प्राप्त होगा।
इसे एक उदाहरण देकर समझा जा सकता है। मान लीजिए कि किसी कर्मचारी ने वर्ष 1999 में नौकरी ज्वाइन की। उस समय उसका वेतन 10,000 रुपये था। बीस वर्ष तक नौकरी करने के बाद 2019 में सेवानिवृत्ति के समय 10 प्रतिशत की औसत वार्षिक वेतन वृद्धि के आधार पर उसका औसत वेतन 61,159 रुपये होगा। तो सुप्रीमकोर्ट के निर्णय के अनुसार कर्मचारी की पेंशन की गणना इसी वेतन के आधार पर होगी। न कि 15,000 रुपये पर, जैसा कि पहले था।
पेंशन गणना के फार्मूले के मुताबिक कर्मचारी के आखिरी एक साल के औसत मासिक वेतन में नौकरी के कुल सालों से गुणा करने पर जो संख्या आएगी उसमें 70 से भाग देने पर पेंशन का आंकड़ा प्राप्त होता है। इस फार्मूले से गणना करने पर नए नियम के तहत उक्त कर्मचारी को तकरीबन 17,474 रुपये की मासिक पेंशन प्राप्त होगी। जबकि पुराने नियम में उसे पेंशन के तौर पर हर महीने केवल 4,285 रुपये ही मिलते।
उदाहरण से स्पष्ट है कि नए नियम से कर्मचारी की पेंशन तो तीन गुना बढ़ जाएगी। लेकिन इसके लिए उसके पीएफ खाते से हर साल 15,000 रुपये के बजाय ज्यादा रकम काटकर ईपीएस खाते में डाली जाएगी। नए नियम के मुताबिक नौकरी के पहले साल यानी 1999-2000 में कर्मचारी के पीएफ खाते में उसका अपना अंशदान 14,400 रुपये का होगा। जबकि नियोक्ता के इतने ही योगदान में से 8.33 फीसद के हिसाब से लगभग 1000 रुपये ईपीएस खाते में और बाकी करीब 13,400 रुपये पीएफ खाते में जाएंगे।
इस तरह पहले वर्ष पीएफ में कुल करीब 27,800 रुपये तथा ईपीएस खाते में करीब 1000 रुपये जमा होंगे। अगले सालों में हर वर्ष जैसे जैसे वेतन वृद्धि के साथ पीएफ में अंशदान बढ़ेगा, उसमें से ईपीएस के लिए कटौती की राशि भी बढ़ती जाएगी। इस तरह बीस वर्षो में ईपीएस में पीएफ से कुल अतिरिक्त अंशदान 4 लाख रुपये का होगा। चूंकि ईपीएफ में सालाना ब्याज भी जुड़ता है, लिहाजा कुल अतिरिक्त अंशदान 8.1 लाख रुपये का बैठेगा। इसका अर्थ हुआ कि कुल इतनी रकम कर्मचारी के पीएफ खाते से कम हो जाएगी।
इसके बावजूद आप फायदे में रहेंगे। क्योंकि किसी भी बचत स्कीम में इस पैसे को लगाकर उतना वार्षिक रिटर्न (11-12 प्रतिशत) हासिल नहीं किया जा सकता जितना ईपीएस में पेंशन के रूप में कर्मचारी को मिलेगा। स्वयं ईपीएफओ आपके पीएफ पर इतना ब्याज नहीं देता।