सपा-बसपा गठबंधन की गाजियाबाद लोकसभा की सीट सपा के पास जाने से कार्यकर्ता हैरान

सपा-बसपा गठबंधन की गाजियाबाद लोकसभा की सीट समाजवादी पार्टी की झोली में जाने से दोनों दलों के कार्यकर्ता हैरान हैं। घोषणा के बाद सपा पदाधिकारी उत्साहित हैं। दूसरी ओर बसपा कार्यकर्ताओं में मायूसी छा गई है।

बसपा नेता यहां सपा के मुकाबले अपने परंपरागत वोटर ज्यादा होने के कारण इस सीट का टिकट अपने हिस्से मानकर चल रहे थे। सपा कार्यकर्ता यह सीट जीतकर इतिहास बदलने का दावा पार्टी आलाकमान से कर रहे थे। सपा जिलाध्यक्ष सुरेंद्र कुमार मुन्नी और महानगर अध्यक्ष राहुल चौधरी का कहना है कि गठबंधन धर्म निभाते हुए मजबूती से चुनाव लड़ेंगे।

बसपा के जिलाध्यक्ष विनोद प्रधान ने कहा कि सीट बंटवारे का फैसला पार्टी आलाकमान का फैसला है। पार्टी कार्यकर्ता और पदाधिकारी प्रत्याशी के पक्ष में मजबूती से प्रचार-प्रसार करेंगे और विजयी बनाएंगे। सपा के सूत्रों की मानें तो गाजियाबाद में पैराशूट प्रत्याशी की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।

कई दावेदारों के नाम चर्चा में

सपा की ओर से जिलाध्यक्ष और तीन बार के पूर्व विधायक सुरेंद्र कुमार मुन्नी, व्यापारी नेता राम किशोर अग्रवाल, अभिषेक गोयल और पूर्व राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त आशु मलिक समेत कई नेता टिकट की रेस में हैं।

सपा-बसपा ने कभी नहीं जीती सीट

1991 से लेकर पिछले चुनाव तक साल 2004 (कांग्रेस) को छोड़कर इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा है। 1989 में जनता दल का प्रत्याशी इस सीट से जीता था। इसी साल जनता दल के मुख्यमंत्री के रूप में मुलायम सिंह ने शपथ ली थी। बाद में मुलायम सिंह ने सपा बनाई। बसपा कभी नहीं जीत पाई।

पिछले दो चुनाव से यह सीट हाई प्रोफाइल

गाजियाबाद संसदीय सीट पिछले दो चुनाव से हाई प्रोफाइल हो गई है। 2009 में राजनाथ सिंह यहां से चुनाव जीते। पिछला चुनाव जीतकर वीके सिंह यहां से सांसद हैं। वीके सिंह के खिलाफ सिने स्टार और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर भी चुनाव लड़े थे, मगर उनकी जमानत जब्त हो गई। इस बार सपा और बसपा का गठबंधन होने से मुकाबला त्रिकोणीय बनता नजर आ रहा है।

गौतमबुद्ध नगर से बसपा प्रत्याशी

नोएडा। सपा और बसपा गठबंधन ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश के लिए लोकसभा सीटों का बंटवारा कर लिया। इसमें गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट बसपा के खाते में गई है। दोनों पार्टी के नेता हैरत में हैं कि आखिर आलाकमान ने किस फार्मूले के तहत यह फैसला लिया है। सपा और बसपा के बीच सीटों का बंटवारा करने के लिए पहला मानक था कि जहां जिसका सांसद है, वह सीट उसी पार्टी के हिस्से में आएगी।