कॉमन सिविल कोड: पीएम मोदी के भाषण से एजेंडा सेट, लेकिन क्या कहता है संविधान का अनुच्छेद 25

hdnlive | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को समान नागरिक संहिता (common civil code) की वकालत की और अल्पसंख्यक समुदायों को इसके खिलाफ कथित तौर पर भड़काने के लिए विपक्षी दलों पर निशाना साधा. मोदी ने विपक्ष पर समान नागरिक संहिता के संबंध में अल्पसंख्यकों को गुमराह करने का आरोप लगाया और कहा, “अगर लोगों के लिए दो अलग-अलग नियम हैं तो क्या एक परिवार काम कर सकता है? क्या वह घर ठीक से चलेगा? फिर कोई देश दो तरह के कानूनों से कैसे चल सकता है? हमें यह ध्यान रखना होगा कि हमारा संविधान भी सभी लोगों को समान अधिकारों की गारंटी देता है. प्रधानमंत्री(PM Modi) ने कहा कि यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी समान नागरिक संहिता के पक्ष में है.

पीएम मोदी ने विपक्ष पर वंशवाद का आरोप लगाते हुए कहा “अगर आप गांधी परिवार के बेटों और बेटियों की मदद करना चाहते हैं, तो आप कांग्रेस को वोट दें. अगर आप मुलायम सिंह के बेटे के कल्याण के लिए काम करना चाहते हैं तो समाजवादी पार्टी को वोट दें. लेकिन मेरी बात बहुत ध्यान से सुनिए, अगर आप अपने बेटे और बेटी का कल्याण करना चाहते हैं तो बीजेपी को वोट दें’.

प्रधानमंत्री का यह बयान 22वें विधि आयोग द्वारा समान नागरिक संहिता पर 30 दिनों के अंदर जनता और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों के विचार आमंत्रित किए जाने के एक सप्ताह बाद आया है.

समान नागरिक कानून के मुताबिक पूरे देश के लिये एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक होंगे.

इस कानून को बीजेपी के वैचारिक एजेंडे का अंतिम विषय भी बताया जा रहा है. अयोध्या में राम मंदिर और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के साथ ही यूसीसी को पूरे देश में लागू करना बीजेपी का आखिरी एजेंडा है. वहीं विपक्ष इसे एक विवादास्पद मुद्दा बता रहा है .

समान नागरिक संहिता क्यों है इतना बड़ा मुद्दा

समान नागरिक संहिता को लेकर बहस कोई नई नहीं है. समय- समय पर देश की बहुसंख्यक आबादी समान नागरिक संहिता को लागू करने की पुरजोर मांग उठाती रही है, वहीं अल्पसंख्यक वर्ग इसका विरोध करता रहा है. सवाल ये है कि क्या सांस्कृतिक विविधता वाले इस देश में इस तरह का कानून लाया जा सकता है? क्या एक एकीकृत राष्ट्र को ‘समानता’ की इतनी जरूरत है कि हम विविधता की खूबसूरती की परवाह ही न करें? और सबसे जरूरी सवाल ये कि इस बारे में हमारा संविधान क्या कहता है? ये सब समझने की कोशिश करते हैं.

समान नागरिक संहिता के पक्ष और विपक्ष में तर्क
समान नागरिक संहिता को लागू करने की मांग संविधान निर्माण के बाद से उठती रही है. लेकिन हर बार इसका विरोध भी हुआ. समान नागरिक संहिता के हिमायती यह मानते हैं कि भारतीय संविधान में नागरिकों को कुछ मूलभूत अधिकार दिए गए हैं. यूसीसी को लागू न करना इन्हीं मूलभूत अधिकारों का हनन होगा.

क्या कहता है कानून

संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत सभी को समानता का अधिकार, अनुच्छेद 15 में धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर किसी भी नागरिक से भेदभाव करने की मनाही और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और निजता के संरक्षण का अधिकार दिया गया है.
महिलाओं के मामले में इन अधिकारों का लगातार हनन होता रहा है. इसका उदाहरण तीन तलाक ( मुस्लिमों में था जिसे पीएम मोदी ने खत्म कर दिया है), मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर मनाही, शादी-विवाह या कई मामलों में महिलाओं को आजादी न देना, इसके अलावा कई ऐसे मामले हैं जिनमें महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है. समाज की ये सारी रीतियां संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ हैं, और समान नागरिक संहिता के पक्ष में इसे संविधान का उल्लंघन बताया जा रहा है.

यूसीसी का जिक्र संविधान में

समान नागरिक संहिता’ शब्द का भारतीय संविधान के भाग 4, अनुच्छेद 44 में जिक्र है. अनुच्छेद 44 राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों से मेल खाता है. इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है.

समान नागरिक संहिता पर बहस

समान नागरिक संहिता के लिए बहस भारत में औपनिवेशिक काल से शुरू होती है. और आजादी के बाद अब तक इस पर बहस जारी है.

इसके तहत हुए कुछ सुधार

हिंदू कोड बिल – हिंदू कानूनों में सुधार के लिए डॉ बी आर अंबेडकर द्वारा बिल का मसौदा तैयार किया गया था. इसने तलाक को वैध बनाया. बहुविवाह का विरोध किया. बेटियों को विरासत का अधिकार दिया. इस बिल का भी जमकर विरोध किया गया था.

उत्तराधिकार अधिनियम- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 मूल रूप से बेटियों को पैतृक संपत्ति में विरासत का अधिकार नहीं देता था. वे केवल संयुक्त हिंदू परिवार से भरण-पोषण का अधिकार मांग सकती थी. लेकिन 9 सितंबर, 2005 को अधिनियम में संशोधन करके इस भेदभाव को दूर कर दिया गया था.

विशेष विवाह अधिनियम: यह 1954 में लाया गया था, जो किसी भी धर्म के व्यक्ति को अपने धर्म से बाहर शादी करने का अधिकार देता है.

अल्पसंख्यक समुदाय खासतौर से मुस्लिम समाज समान नागरिक संहिता का जबरदस्त विरोध कर रहे हैं. संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला देते हुए कहा जाता है कि संविधान ने देश के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया है. इसलिये सभी पर समान कानून थोपना संविधान के साथ खिलवाड़ करने जैसा होगा.

भारत का संविधान कैसे यूसीसी का विरोध करता है इस तर्क को समझिए

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 भारत के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है. यह मौलिक अधिकार यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी आधार पर भेदभाव किए बिना अपनी पसंद के किसी भी धर्म को मानने की आजादी है. अनुच्छेद 25 में “नागरिक” शब्द की जगह “सभी व्यक्तियों” शब्द का इस्तेमाल किया गया है. यानी कि धार्मिक स्वतंत्रता भारत के नागरिकों तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह अधिकार विदेशियों को भी मिलता है.

अनुच्छेद 25 व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है. यह अपनी पसंद के धर्म को मानने के अधिकार की गारंटी देता है. यह कानून सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकता के अधीन है.

मुस्लिमों में विरोध की वजह क्या, क्या कहता है शरिया कानून

मुस्लिमों के मुताबिक उनके निजी कानून उनकी धार्मिक आस्था पर आधारित हैं इसलिये समान नागरिक संहिता लागू कर उनके धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप न किया जाए.

मुस्लिम विद्वानों का ये तर्क है कि इस्लाम का शरिया कानून 1400 साल पुराना है. यह कानून कुरान और पैगम्बर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं पर आधारित है. मुस्लिम विद्वानों के मुताबिक शरिया उनकी आस्था से जुड़ा हुआ है. मुस्लिमों का ये तर्क है कि 6 दशक पहले उन्हें मिली धार्मिक आजादी धीरे-धीरे उनसे छीनने की कोशिश की जा रही है.

भारतीय संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता से संबंधित कई दूसरे संवैधानिक प्रावधान भी हैं.

अनुच्छेद 15-धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं.
अनुच्छेद 25 से 28-धार्मिक स्वतंत्रता की बात है.

संविधान सभा में भी इस मुद्दे पर हो चुकी है बहस

संविधान सभा ने समान नागरिक संहिता को नीति निर्देशक सिद्धांत के रूप में अपनाते हुए इस पर लंबी चर्चा की.

जब 23 नवंबर, 1948 को यूसीसी अनुच्छेद पर चर्चा हो रही थी. कई मुस्लिम सदस्यों ने चेतावनी दी थी कि यह समुदाय की सहमति पर लागू होगा.

बहस के दौरान मद्रास के एक सदस्य मोहम्मद इस्माइल ने कहा था “किसी भी समुदाय का पर्सनल लॉ जिसे क़ानून द्वारा गारंटी दी गई है, उसे तब तक नहीं बदला जाएगा जब तक कि समुदाय की स्वीकृति न ली जाए.

इसके बाद पश्चिम बंगाल के नजीरुद्दीन अहमद ने कहा कि देश में सभी धार्मिक समुदाय की अपनी धार्मिक मान्यताएं और प्रथाएं हैं. यानी यूसीसी से सिर्फ मुसलमानों को असुविधा नहीं होगी.

इसी तरह, भारतीय विद्या भवन की स्थापना करने वाले वकील और शिक्षक केएम मुंशी ने कहा था ‘ हिंदुओं के अपने अलग कानून हैं . क्या हम इस आधार पर इस कानून की अनुमति देने जा रहे हैं कि यह देश के पर्सनल लॉ को प्रभावित करता है? इसलिए यह सिर्फ अल्पसंख्यकों का सवाल नहीं है, बल्कि बहुसंख्यकों को भी प्रभावित करता है.

यूसीसी पर चर्चा के अंत में डॉ भीमराव अंबेडकर ने आश्वासन दिया कि यूसीसी को लोगों पर फिलहाल लागू नहीं किया जाएगा, क्योंकि आर्टिकल 44 सिर्फ ये कहता है कि राज्य एक नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा. हालांकि अंबेडकर ने ये भी कहा कि भविष्य में स्वैच्छिक तरीके से संसद यूसीसी को लागू करने का प्रावधान कर सकती है.

2024 के लोकसभा चुनाव में यूसीसी कितना बड़ा मुद्दा

अब पीएम मोदी ने समान नागरिक संहिता की बात कहकर विपक्ष के सामने एजेंडा सेट कर दिया है. विपक्ष लगातार इस पर हमलावर हो रहा है. गोवा, गुजरात, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश की कई राज्य सरकारों ने अपने राज्यों में समान नागरिक संहिता लाने की कोशि