पाकिस्तान : सीवरों को साफ करने को मजबूर ईसाई सफाईकर्मी

पाकिस्तान में नालियों और सीवरों की सफाई का काम ज्यादातर अल्पसंख्यकों के जिम्मे ही सौंपा गया है। लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि उन्हें इस दौरान किसी भी प्रकार का सुरक्षा उपकरण मुहैया नहीं कराया जाता है।

ऐसे ही एक सफाईकर्मी जमशेद एरिक ने बताया कि वह कराची में सीवरों को बिना किसी दस्ताने के साफ करने को मजबूर हैं। एरिक ने कहा कि जब वह इन गहरे सीवरों में घुसते हैं तो वह जीसस से खुद को सुरक्षित रखने की प्रार्थना करते हैं।

उन्होंने बताया कि यह काम बेहद खतरनाक है। गहरे भूमिगत सीवरों में जाने के दौरान उन्हें किसी भी प्रकार का सुरक्षा उपकरण मुहैया नहीं कराया जाता है। वह गैस के बदबूदार कीचड़ और जहरीले माहौल में बिना किसी मास्क या दस्ताने को जाने को मजबूर हैं।

एरिक ने कहा कि यह काम बहुत कठिन है। गटर के अंदर अक्सर तिलचट्टों के झुंड से घिरा हुआ रहता हूं। उन्होंने कहा कि एक लंबे दिन के बाद जब मैं घर पहुंचता हूं तो गटर की बदबू भी मेरे साथ पहुंचती है। जो मुझे जीवन में अपने स्थान की निरंतर याद दिलाती है। वह आगे बताते हैं कि जब मैं खाना खाने के लिए अपने हाथों को मुंह के पास ले जाता हूं तो उसमें सीवेज की गंध आती है।

पाकिस्तान में ईसाई सफाईकर्मियों की हुई मौत इस बात को रेखांकित करती है कि एक बार भारतीय उपमहाद्वीप के हिंदुओं के बीच जाति को लेकर जो भेदभाव होता था, वह अब किस तरह पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ हो रहा है।

हजारों अन्य निचली जातियों के हिंदुओं की तरह, एरिक के पूर्वज सदियों पहले ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए थे। वह धर्म परिवर्तन के माध्यम से अपने जीवन के हर पहलू पर शासन करने वाले भेदभाव के एक चक्र से बचने की उम्मीद कर रहे थे।

पिछले साल जुलाई में, पाकिस्तानी सेना ने सीवर की सफाई करने वाले कर्मियों के लिए समाचार पत्रों में विज्ञापन जारी किए, जिसमें केवल ईसाई आवेदन कर सकते थे।

हालांकि, जब इस बात को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं ने विरोध जताया तो इसे वापस ले लिया गया। लेकिन पाकिस्तान में नगरपालिकाएं एरिक जैसे ईसाई सफाईकर्मियों पर निर्भर हैं। इन्हें इस गंदगी के ढेर में बिना किसी सुरक्षा उपकरण के उतरने के लिए लगभग 400 रुपये दिए जाते हैं।