‘निर्भया कानून’ वाले जस्टिस वर्मा भी थे मौत की सजा के खिलाफ

निर्भया गैंगरेप के जघन्य मामले के चलते देश भर में हुए आंदोलन के बाद सरकार ने पॉक्सो ऐक्ट लागू किया गया था और रेप के मामलों में कड़ी सजा का प्रावधान किया गया। 2013 में जस्टिस जेएस वर्मा के नेतृत्व में बनी कमिटी की सिफारिशों के आधार पर यह कानून बनाया गया था। हालांकि रेप के खिलाफ देश भर में बने माहौल के बावजूद वर्मा ने मौत की सजा का यह कहते हुए विरोध किया था कि यह पीछे ले जाने वाला होगा। यही नहीं जस्टिस वर्मा ने मौत की सजा को लेकर कहा था कि इसका बहुत असर भी देखने को नहीं मिलता है।

अंतरराष्ट्रीय कानूनों और अमेरिकी अदालतों के फैसलों का उदाहरण देते हुए वर्मा के नेतृत्व वाले पैनल ने कहा था कि मौत की सजा शुरू करना पीछे ले जाने वाला कदम होगा क्योंकि यह जघन्यतम अपराधों के लिए ही तय की गई है। इस पैनल में वर्मा के अलावा हाई कोर्ट के पूर्व जज लीला सेठ, पूर्व सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यन भी शामिल थे। वर्मा कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि दुनिया भर में मौत की सजा से गंभीर अपराधों में कमी आना सिर्फ एक मिथक है।

तमाम महिला संगठनों और स्कॉलर्स के विचारों को ध्यान में रखते हुए वर्मा कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि वह जघन्यतम अपराधों में मौत की सजा के विरोध में नहीं हैं। लेकिन, समाज के व्यापक हित में मौत की सजा को खत्म किए जाने पर विचार करना चाहिए।