एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक को याद करना अब भी रोमांच भर देता है : घोष

नई दिल्ली; 04 सितंबर । भारतीय फुटबॉल टीम के स्वर्णिम युग के अहम सदस्यों में से एक पूर्व डिफेंडर अरूण घोष को 1962 में जकार्ता एशियाई खेलों में जीते गये स्वर्ण पदक को याद करना अब भी रोमांच से भर देता है जब उन्हें पाकिस्तानी हॉकी टीम का समर्थन मिला था। भारतीय टीम ने फाइनल में दक्षिण कोरिया को 2-1 से हराकर खिताब जीता था। एशियाई खेलों में यह भारतीय फुटबॉल टीम का अंतिम स्वर्ण पदक था। भारत ने नई दिल्ली में जब 1951 में शुरूआती एशियाई खेलों की मेजबानी की थी; तब भी स्वर्ण पदक जीता था। यह फाइनल मुकाबला आज से ठीक 58 वर्ष पहले चार सितंबर को खेला गया था। घोष; जरनैल सिंह और सैयद नईमुद्दीन की मजबूत रक्षात्मक तिकड़ी काफी मशहूर थी। घोष ने कहा कि पूरा इंडोनेशिया चाहता था कि भारत फाइनल मैच हार जाये लेकिन पाकिस्तान हॉकी टीम ने उनका समर्थन किया। उन्होंने कहा; ‘‘जब मैं चार सितंबर 1962 की वो शाम याद करता हूं तो मेरे अंदर रोमांच पैदा हो जाता है। जकार्ता में सेनायान स्टेडियम खचाखच भरा था और एक लाख के करीबी इंडोनेशियाई दर्शक कोरियाई टीम के लिये चीयर कर रहे थे।’’ घोष ने अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ की वेबसाइट के लिये लिखा; ‘‘लेकिन हमारे भी समर्थक थे। क्या कोई अनुमान लगा सकता है? यह हालांकि हैरानी भरा होगा; पाकिस्तान हॉकी टीम ने हमारा हौसला बढ़ाया।’’ उन्होंने कहा; ’’जब हम 2-0 से आगे हो गये तो स्टेडियम में सन्नाटा पसर गया। हालांकि कोरिया ने अंत में एक गोल कर लिया; वर्ना उनके गोलकीपर पीटर थांगराज को अंत तक खतरा बना रहा। भारतीय दल के लिये इतना द्वेष था कि कोई भी मैच के बाद हमें बधाई देने नहीं आया। लेकिन वो रात भारतीय फुटबॉल के लिये थी।’’