आंकड़ों के मुताबिक अब लड़के नहीं बल्कि लड़कियों को गोद ले रहा है लोग

 

भारतीय समाज में लड़कियों को लेकर कई तरह का भेदभाव मौजूद रहा है. आज़ादी के बाद से ही लड़कियों को गर्भ में ही न मार दिया जाए, उन्हें लड़कों की तरह पढ़ने की आज़ादी मिले और नाबालिग बच्चियों की शादी न करा दी जाए, इसके लिए कानून बने हैं, सरकारी योजनाएं लागू की गईं और जागरूकता अभियान भी चलाए गए. हालांकि ‘न्यू इंडिया’ में लड़कियों के साथ भेदभाव वाला ये ट्रेंड कुछ बदलता नज़र आ रहा है. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के आंकड़े कहते हैं कि भारत में लोग अब लड़कों से ज्यादा लड़कियों को गोद ले रहे हैं.

क्या कहते हैं आंकड़े ?

भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की तरफ से जारी आंकड़ों की मानें तो 2015 से लेकर 2018 के बीच कुल 11,649 बच्चों को गोद लिया गया था. इनमें से 6,962 लड़कियां थी, जबकि लड़कों की संख्या 4,687 थीं. आंकड़ों से साफ़ है कि इन तीन सालों में गोद लिए गए बच्चों में से 60% से ज्यादा लड़कियां थीं.

गोद लेने वाले माता-पिता किसी भी धर्म के, अनिवासी भारतीय और यहां तक कि भारत के बाहर रहने वाले गैर-भारतीय भी हो सकते हैं. वे सभी जुवेनाइल जस्टिस एक्ट (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन), 2015 के तहत एक बच्चे को अपनाने के पात्र हैं. विकलांग भी अपनी अक्षमता की प्रकृति और सीमा पर विचार करते हुए बच्चा गोद लेने के पात्र हैं. गे या लेस्बियन जोड़े भी गोद ले सकते हैं, लेकिन सिंगल पेरेंट के रूप में, परिवार के रूप में नहीं.

अगर बच्चे की उम्र चार साल है, तो माता-पिता दोनों की उम्र का जोड़ 90 वर्ष होना चाहिए. एक शिशु, एक बच्चा या एक बड़ा बच्चा गोद लिया जा सकता है. लेकिन ऐसे में बच्चे की उम्र बढ़ने के साथ ही माता-पिता की उम्र का जोड़ भी बढ़ता जाएगा. बच्चे और गोद लेने वाले माता-पिता में से प्रत्येक की उम्र में न्यूनतम अंतर 25 साल से कम नहीं होना चाहिए. अगर बच्चा गोद लेने वाले की उम्र बहुत ज्यादा है, तो शिशु या छोटे बच्चे को पालना मुश्किल हो सकता है. ऐसे में एजेंसियां एक बड़े बच्चे को गोद लेने का सुझाव दे सकती हैं.