काबा में होती थी कई ईश्वरों की पूजा

सऊदी अरब के मक्का शहर में काबा को इस्लाम में सबसे पवित्र स्थल माना जाता है. इस्लाम का यह प्राचीन धार्मिक अनुष्ठान दुनिया के मुसलमानों के लिए काफ़ी अहम है. इस साल उम्मीद है कि हज पर 20 लाख से ज़्यादा मुसलमान सऊदी अरब पहुंचेंगे. जानिए हज से जुड़ी कुछ ख़ास बातें-

हज पर जाने का मक़सद ?

इस्लाम के कुल पाँच स्तंभों में से हज पांचवां स्तंभ है. सभी स्वस्थ और आर्थिक रूप से सक्षम मुसलमानों से अपेक्षा होती है कि वो जीवन में एक बार हज पर ज़रूर जाएं.

हज को अतीत के पापों को मिटाने के अवसर के तौर पर देखा जाता है. ऐसा माना जाता है एक मुसलमान हज के बाद अपनी ज़िंदगी को फिर से शुरू कर सकता है. ज़्यादातर मुसलमानों के मन में जीवन में एक बार हज जाने की इच्छा होती है.

जो हज का खर्च नहीं उठा पाते हैं उनकी धार्मिक नेता और संगठन आर्थिक मदद करते हैं. कुछ मुसलमान तो ऐसे भी होते हैं जो अपनी ज़िंदगी भर की कमाई हज पर जाने के लिए बचाकर रखते हैं. दुनिया के कुछ हिस्सों से ऐसे हाजी भी पहुंचते हैं जो हज़ारों मिल की दूरी महीनों पैदल चलकर तय करते हैं और मक्का पहुंचते हैं.

मुसलमानों के लिए इस्लाम के पाँच स्तंभ काफ़ी मायने रखते हैं. ये स्तंभ पाँच संकल्प की तरह हैं. इस्लाम के मुताबिक़ जीवन जीने के लिए ये काफ़ी अहम हैं.

 इस्लाम के पांच स्तंभ

शहादाह-मुसलमानों के तौर-तरीक़ों को गंभीरता से पढ़ना, सुनना और उसकी चर्चा करना.

सलात-दिन में पाँच बार नियम से नमाज़ अदा करना.

ज़कात-ग़रीबों और ज़रूरतमंद लोगों को दान करना.

सावम-रमज़ान के दौरान उपवास रखना.

हाजी-मक्का जाना.

हज का इतिहास ?

चार हज़ार साल पहले मक्का का मैदान पूरी तरह से निर्जन था. मुसलमानों का मानना है कि पैग़ंबर अब्राहम ने अपनी पत्नी हाजिरा और बेटे इस्माइल को फ़लस्तीन से अरब लाने का निर्देश दिया ताकि उनकी पहली पत्नी सारा की ईर्ष्या से उन्हें बचाया जा सके.

अल्लाह ने पैग़ंबर अब्राहम से उन्हें अपनी किस्मत पर छोड़ देने के लिए कहा. उन्हें खाने की कुछ चीज़ें और थोड़ा पानी दिया गया. कुछ दिनों में ही ये सामान ख़त्म हो गया. हाजिरा और इस्माइल भूख और प्यास से बेहाल हो गए.

मायूस हाजिरा सफ़ा और मारवा पहाड़ी से मदद की चाहत में नीचे उतरीं. भूख और थकान से टूट चुकी हाजिरा गिर गईं और उन्होंने संकट से मुक्ति के लिए अल्लाह से गुहार लगाई.

इस्माइल ने ज़मीन पर पैर पटका तो धरती के भीतर से पानी का एक सोता फूट पड़ा और दोनों की जान बच गई.

हाजिरा ने पानी को सुरक्षित किया और खाने के सामान के बदले पानी का व्यापार भी शुरू कर दिया. जब पैग़ंबर अब्राहम फ़लस्तीन से लौटे तो उन्होंने देखा कि उनका परिवार एक अच्छा जीवन जी रहा है और वो पूरी तरह से हैरान रह गए.

पैगंबर अब्राहम को अल्लाह ने एक तीर्थस्थान बनाकर समर्पित करने को कहा. अब्राहम और इस्माइल ने पत्थर का एक छोटा-सा घनाकार निर्माण किया. इसे काबा कहा जाता है.

अल्लाह के प्रति अपने भरोसे को मज़बूत करने ही हर साल यहां मुसलमान आते हैं. सदियों बाद मक्का एक फलता-फूलता शहर बन गया और इसकी एकमात्र वजह पानी के मुकम्मल स्रोत का मिलना था.

धीरे-धीरे लोगों ने यहां अलग-अलग ईश्वर की पूजा शुरू कर दी. पैगंबर अब्राहम का पाक स्थान मूर्तियों को रखने का ठिकाना बन गया. सालों बाद अल्लाह ने पैग़ंबर मोहम्मद को कहा कि वो काबा को पहले जैसी स्थिति में लाएं और वहां केवल अल्लाह की ज़ियारत होने दें.

628 साल में पैग़ंबर मोहम्मद ने अपने 1400 अनुयायियों के साथ एक यात्रा शुरू की. यह इस्लाम की पहली तीर्थयात्रा बनी और इसी यात्रा में पैग़ंबर अब्राहम की धार्मिक परंपरा को फिर से स्थापित किया गया.

काबा मुसलमानों के लिए ख़ास क्यों है?

इस्लामिक परंपरा में इस बात का ज़िक्र है कि काबा का निर्माण पैग़बर अब्राहम और इस्माइल ने हज़ारों साल पहले एक ऐसे पवित्र स्थल के रूप में किया था जहां एक के अलावा किसी और की ज़ियारत नहीं होती थी.

पहले काबा में अलग-अलग तीर्थयात्री आने लगे थे. यहां तक कि अरब प्रायद्वीप में तब के रहने वाले ईसाई भी आते थे. स्थानीय आदिवासी यहां मूर्तियों की पूजा भी करने लगे थे. काबा आगे चलकर इस्लाम में एकेश्वरवाद का प्रतीक बन गया.

हाजी वहां करते क्या हैं?

hajji in kabba

हाजी यहां एहरम वस्त्र में आते हैं. इनका पूरा ध्यान आंतरिक शुद्धीकरण पर होता है. महिलाएं मेकअप और इत्र के इस्तेमाल से बचती हैं और लूज़-फ़िटिंग वाले कपड़े पहनती हैं. इनका सिर भी ढका होता है. कपड़े का रंग सफ़ेद होता है और इनमें सिलाई हराम होती है. ऐसा मुसलमानों में समानता के लिए किया जाता है ताकि यहां