जानें क्या है पाकिस्तान के ख़िलाफ़ ‘पानी के सर्जिकल स्ट्राइक’ का पूरा सच

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में जल संसाधन मंत्री और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी ने गुरुवार शाम ट्वीट कर जानकारी दी कि भारत, पाकिस्तान को जाने वाली अपनी तीन नदियों का पानी रोकेगा और अब जम्मू-कश्मीर और पंजाब के लोगों के लिए इसका इस्तेमाल होगा.

14 फ़रवरी को पुलवामा में जैश-ए-मोहम्मद के एक चरमपंथी आत्मघाती हमले के बाद इस सरकारी घोषणा को भारतीय मीडिया के एक हिस्से में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ ‘पानी का सर्जिकल स्ट्राइक’ बताया गया.

हालांकि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के दफ्तर ने गुरुवार को ही बताया था कि ये दीर्घकालिक योजना है और इसका सिंधु नदी संधि से कोई लेना-देना नहीं है.

गडकरी के दफ्तर ने ये स्पष्ट किया था कि इस फ़ैसले का पुलवामा हमले से कोई संबंध नहीं है और सिंधु नदी संधि अपनी जगह पर कायम रहेगी.

दफ्तर ने कहा, “रावी, सतलज और ब्यास नदियों का पानी डैम बनाकर रोका जाएगा. शाहपुर-कांडी डैम बनाने का काम पुलवामा हमले के पहले से ही हो रहा है. अब कैबिनेट अन्य दो डैम बनाने पर फ़ैसला लेगी.”

लेकिन मीडिया का एक हिस्सा इस फ़ैसले को अलग तरह से पेश कर रहा है, और कह रहा है कि इस घोषणा के बाद ‘पानी-पानी को तरसेगा पाकिस्तान’.

यही नहीं, सरकार के इस फ़ैसले की टाइमिंग पर भी सवाल पूछे जा रहे हैं.

पाकिस्तान पर दबाव डालने के लिए भारत में कुछ लोग हमेशा से सिंधु नदी संधि को रद्द करने या पानी को पाकिस्तान के ख़िलाफ़ हथियार बनाकर इस्तेमाल करने की बात करते रहे हैं. ऐसी बातों में चीन के ऐंगल का भी ज़िक्र होता है – कि अगर भारत ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कोई ऐसा कदम उठाया तो चीन का क्या रुख रहेगा.

चरमपंथी संगठन जैश का बेस पाकिस्तान में है. पुलवामा हमले के लिए भारत ने पाकिस्तान पर सीधा आरोप लगाया है और पाकिस्तान ने पहले की तरह इस बार भी सभी आरोपों से इनकार किया.

भारत और पाकिस्तान में जानकार कहते रहे हैं कि अगर भारत संधि के अंतर्गत अपने ही हिस्से का पानी इस्तेमाल नहीं कर पाया तो ये भारत की समस्या है न कि पाकिस्तान की.

साल 1960 की सिंधु जल संधि के अंतर्गत सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया. सतलज, ब्यास और रावी नदियों को पूर्वी नदी बताया गया जबकि झेलम, चेनाब और सिंधु को पश्चिमी नदी बताया गया.

समझौते के मुताबिक भारत पूर्वी नदियों का पानी (कुछ अपवादों को छोड़कर) बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है.

पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान के लिए होगा, लेकिन समझौते के तहत इन नदियों के पानी का सीमित इस्तेमाल का अधिकार भारत को दिया गया, जैसे बिजली बनाना, कृषि के लिए सीमित पानी.

नितिन गडकरी ने समाचार चैनल से बातचीत में कहा कि रावी, सतलज और ब्यास में कुल 33 मिलियन एकड़ फ़ीट पानी है जबकि भारत इसमें से 31 मिलियन एकड़ फ़ीट पानी इस्तेमाल कर रहा है.

क्या कोई नई बात?

साल 2016 में उड़ी पर चरमपंथी हमले के बाद भटिंडा में एक रैली में नरेंद्र मोदी ने कहा था, “ये इंडस वाटर ट्रीटी (सिंधु जल संधि) जो है, जिसमें हिंदुस्तान के हक़ का पानी है, जो पाकिस्तान में बह जाता है, अब वो बूंद-बूंद पानी रोककर, मैं पंजाब के, जम्मू-कश्मीर के, हिंदुस्तान के किसानों के लिए, वो पानी लाने के लिए… (आवाज़ साफ़ नहीं).”

सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट्स में नरेंद्र मोदी को ये कहते भी बताया गया कि, “ख़ून और पानी साथ नहीं बह सकते.”

यानी गडकरी के ट्वीट के इस हिस्से में पुरानी बात को दोहराया गया है. सवाल ये कि अभी तक सरकार ने अपनी ही बात पर अमल क्यों नहीं किया?

भारत क्यों अपने ही पानी का इस्तेमाल नहीं कर पाता?

इंडियन इंस्टिट्यूट फॉर डिफ़ेंस स्टडीज़ के डॉक्टर उत्तम कुमार सिन्हा के मुताबिक, “इसके कई कारण हैं, धन की कमी, रुचि की कमी, प्रोजेक्ट्स के विकास को लेकर हमारी ख़राब प्लानिंग….”

नदी के पानी के बंटवारे पर राज्यों के बीच विवाद भी इसका एक कारण है.

नितिन गडकरी ने अपने ट्वीट में आगे कहा, “रावी नदी पर शाहपुर-कांडी बांध का काम शुरू हो गया है.”

पानी मामलों के जानकार हिमांशु ठक्कर के मुताबिक ये काम रातों-रात नहीं होगा और इसमें कई साल लगेंगे.

पंजाब और जम्मू-कश्मीर के बीच विवाद के कारण शाहपुर-कांडी बांध पर काम सालों की देरी से रुक-रुक कर चल रहा है.

सिंधु बेसिन ट्रीटी पर 1993 से 2011 तक पाकिस्तान के कमिश्नर रहे जमात अली शाह ने बीबीसी को बताया, “(भारत की ओर से) जिस पानी का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा था, जिसे बांध जमा करके नहीं रख पा रहे थे, वो पाकिस्तान की तरफ जाता था… भारत कहता है कि (मीडियम या निचले स्तर) बाढ़ के पानी को भी जमा किया