भक्ति से मुक्ति प्राप्त होती है

एक बार राम और लक्ष्मण नाव पर सवार होकर गंगा नदी पार कर रहे थे। जब वे नदी के पार उतर गए, तब नाविक ने देखा उसकी नाव तो सोने में परिणित हो गयी है। नाविक ने यह चमत्कार की गाथा अपनी पत्नी को बतायी।

पत्नी घर के सारे सामान, जो लकड़ी से बने थे उनको लेकर गंगा के किनारे जा पहुंची और राम के चरणों के जादुई स्पर्श से उन सभी सामानों को सोने में परिवर्तित कर लिया। तत्पश्चात नाविक ने अपनी पत्नी से कहा इन चरणों को ही अपने घर में ले जाना चाहिए था, क्योंकि लकड़ी की इन वस्तुओं को घर से गंगा किनारे तक ढोने में अपनी शक्ति और समय नष्ट कर रही है। फिर पत्नी ने वैसा ही किया। घर जाकर रामजी ने चार फल दिए, जिसे पाकर पति-पत्नी बहुत संतुष्ट हुए।

लक्ष्मण जी का फल

तत्पश्चात लक्ष्मण जी वहां आये, जब उनसे देने के लिए कुछ कहा गया तो उन्होंने केवल एक फल उनको प्रदान किया। रामजी ने जो चार फल दिए वह थे काम, अर्थ, धर्म और मोक्ष। भौतिक वासनाओं की तृप्ति जिससे होती है उसको काम कहते हैं, जिनके द्वारा मानसिक कामनाओं की तृप्ति होती है उसे अर्थ कहते हैं तथा मानसिक और आध्यात्मिक संतुष्टि जिनसे मिलती है, उसको धर्म कहते हैं और आत्मिक तृप्ति को मोक्ष कहते हैं। लक्ष्मण जी ने उस दांपत्य को कहा-भ्राता (राम) द्वारा दिए चारों फल तब तक सुपाच्य नहीं होंगे अर्थात आत्मसात नहीं होंगे जब तक मेरे द्वारा दिया गया यह फल आपके पास नहीं हो। पता है, वह फल क्या था जो लक्ष्मण जी ने दिया? वह फल था भक्ति और यही कारण है कि एक भक्त हमेशा भक्ति ही मांगता है। हनुमानजी ने, जब राम से मांगा तो क्या मांगा? हनुमानजी कहते हैं-भक्ति दान मोहि दीजिए, प्रभु देवन के देव। और निंह कछु चाहिए निशि दिन तुम्हरी सेव। भक्त जानता है कि भक्ति एक अमूल्य निधि है, भक्ति वह प्यार है जिसमें भक्त और भगवान दोनों एक दूसरे के सामीप्य रहते हैं, भक्ति वह पावन गंगा है जिसमें भक्त गोता लगाकर असीम सुख की अनुभूति पाकर अपने आपको धन्य समझता है।

मुक्ति क्या है? जिसका अर्थ होता है बंधनों से मुक्ति अर्थात छुटकारा मिल जाना। कहा है बंधनम मुच्यते मुक्ति। जहां कहीं भी बंधन है वहां प्रश्न उठता है मुक्ति का। जहां बंधन नहीं है, वहां मोक्ष का प्रश्न भी नहीं है। ये बंधन कितने हैं? सांसारिक, मानसिक, व्यक्तिक और मनसा-वाचा-कर्मणा द्वारा बंधन में बंधा होना।

पूर्ण समर्पण

भक्ति में तो निश्चित प्रेम होता है न कि कोई कामना पूर्ति के लिए किया गया पूजा-पाठ। पूर्ण रुपेण समर्पण अपने प्रियतम के प्रति, कोई डिमांड नहीं, कोई कामनापूर्ति हेतु प्रार्थना नहीं बल्कि प्रेम-प्रेम। जैसे सूरजमुखी फूल सूरज को ही निहारता है और एकटक सूर्यास्त होने तक निहारता है, अपने आपको सूरज के सम्मुख रखता है तथा अस्त होने के बाद उदास हो जाता है अगली सुबह सूर्योदय तक इंतजार करता है। पतंगा प्रकाश की ओर उन्मुख होता है और अंततः जान भी गंवा देता है। स्वाति बूंद सीप में गिरकर मोती बन जाती है। मधुमक्खी मात्र शहद के लिए ही फूलों पर बैठती है। लक्ष्य के प्रति एकाग्रता हो तो तृप्ति का एहसास होता है और तृप्ति संतुष्टि ही मुक्ति है जो मात्र भक्ति से प्राप्त होती है। पिंजड़ा चाहे सोने का हो या लोहे का चिड़िया के लिए कोई अन्तर नहीं है, दोनों ही बंधन है क्योंकि मुक्ति नहीं है। कोई मिले जो पिंजड़े के दरवाजे को खोल दे और चिड़ियां भी उड़ना चाहेगी तभी तो मुक्ति होगी। सच्चे सद्गुरु बंधन काट देते हैं और तृप्ति का आत्मसंतुष्टि का अनुभव कराकर सचमुच में मुक्त कर देते हैं। सच्ची भक्ति क्या होती है? प्रेम क्या होता है? यह लिखने-पढ़ने का विषय नहीं है, अहसास करने का, अनुभव करने का विषय है।

बंदी छोड़ सद्गुरु का मिलना और मुक्ति का अहसास होना बहुत बड़े सौभाग्य की बात है। मुक्ति का कोई सर्टिफिकेट नहीं होता बल्कि एक सच्चा भक्त ही भक्ति द्वारा मुक्ति प्राप्त कर अपना जीवन सफल करता है। स्वतंत्रता पूर्वक आकाश में चिड़िया का उड़ना भक्ति है और पिंजड़े से बाहर आना मुक्ति है- यह उड़ान भरते रहना है और लक्ष्य के प्रति एकाग्र रहना है वरना बंधन होने में देर नहीं लगेगी अतैव भक्ति मुक्ति है और मुक्ति ही भक्ति का रूपक है-एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।