अमलेश राजू की पुस्तक “गांधी और अंबेडकर ” के लोकार्पण पर हुई चर्चा


–गांधी और अंबेडकर ने निर्बलों को सबल बनाया, वंचितों को अधिकार दिलाया

नई दिल्ली (hdnlive)। महात्मा गांधी और डा. भीम राव अंबेडकर ने निर्बलों को सबल बनाने, वंचितों को अधिकार दिलाने, महिलाओं को शिक्षित बनाने और व्याप्त कुरीतियों तथा छूआछूत के खिलाफ अभियान चलाकर समाज में परिवर्तन की राह प्रशस्त की। गांधीजी ने आजादी के आंदोलन से लेकर अहिंसा जैसी चीजों पर निस्वार्थ भाव से काम किया और देश में सर्वमान्य नेता हुए जबकि आंबेडकर ने संविधान की रूप रेखा बनाने से लेकर छूआछूत जैसी सामाजिक कुरीतियो पर जमकर हमला बोला। दोनों में विचारों की समानता भी थी और कुछ विषयों को लेकर मतभेद भी थे। दोनों महापुरुषों के बीच तुलना नहीं की जा सकती है।
जनसत्ता के वरिष्ठ पत्रकार अमलेश राजू की पुस्तक गांधी और अंबेडकर के लोकार्पण और चर्चा में वक्ताओं ने कहा कि गांधी और अंबेडकर के विचार को आजादी के बाद कुछ अलग नजरिये से देखा जाने लगा और यही नजरिया बाद में प्रमुखता से चर्चा का विषय बन गया। दोनों स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिक चिंतक, समाज सुधारक और देश में फैली छूआछूत जैसी चीजों को समाप्त करने के लिए याद किए जाएंगे।

कई मिथकों को भी तोड़ने का दस्तावेज साबित होगा

दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के मीडिया सेंटर में आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्टस इंडिया और कंफेडरेशन आफ न्यूजपेपर्स एंड न्यूज एजंसी आर्गनाइजेशन के अध्यक्ष रासबिहारी ने की। बतौर मुख्य वक्ता प्रख्यात टीवी पत्रकार दीपक चौरसिया थे। सम्मानित वक्ताओं के रुप में राजनीतिक चिंतक, लेखक और दिल्ली नगर निगम के पूर्व अध्यक्ष खविंदर सिंह कैप्टन और राज एक्सप्रेस भोपाल के स्थानीय संपादक व श्रम कल्याण मंडल, मध्यप्रदेश सरकार के सदस्य प्रदीप तिवारी के साथ विषय प्रवर्तन इंडिया फार चिल्ड्रेन के निदेशक अनिल पांडेय कर रहे थे। धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ पत्रकार और आईजीएनसीए के मीडिया नियंत्रक अनुरोध पुनेठा ने किया। वक्ताओं ने कहा कि गांधी और आंबेडकर के बारे में अमलेश राजू की सामाजिक चिंतकों से ली गई विचारों पर आधारित यह किताब इतिहास के कई पन्ने तो खोलती ही हैं, कई मिथकों को भी तोड़ने का दस्तावेज साबित होगा। इसलिए नई पीढ़ी को इस किताब को जरूर पढ़नी चाहिए ताकि उनकी समझ विकसित हो सके।

राजनीतिक दृष्टिकोण के लिए अलग-अलग तरीके से व्याख्या और परिभाषित


दीपक चौरसिया ने कहा कि आजादी के दौर का यह बड़ा विमर्श रहा है। गांधी और अंबेडकर को उनकी राजनीतिक दृष्टिकोण के लिए अलग-अलग तरीके से व्याख्या और परिभाषित की गई है। जबकि 1930 में भीमराव अंबेडकर ने विभाजन पर जो किताब लिखी उसे पुस्तकालय में ढ़ूढ़कर पढ़ा जा सकता है। बहुत ही बारीकी से अंबेडकर ने सभी विषयो पर साफ तरीके से लिख दिया। इसलिए आज के समय में आंबेडकर को नए सिरे से पढ़ने की जरूरत है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रास बिहारी ने कहा कि गांधी और अंबेडकर में कुछ रूपों में समानता है। दोनों ने भारत के बंटवारे और मुसलमान लेकर दोनों के विचारों में मतभेद थे। बाबजूद इसके आज जब समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों पर चर्चा और सरकार के दृष्टिकोण पर बहस हो रही है तो फिर समाजिक विज्ञान को समझने वाले और राजनेताओं को भी गांधी और अंबेडकर के विचारों को नए सिरे से पढ़ने की जरूरत है। कार्यक्रम में पूर्व विधायक और वरिष्ठ पत्रकार रूप चौधरी, रामेश्वर दयाल ने भी गांधी और अंबेडकर के बारे में अपने विचार रखते हुए कहा कि अमलेश राजू की यह किताब इतिहास के कई पन्ने तो खोलते ही हैं।कई मिथकों को भी तोड़ने का द्स्तावेज साबिहत होगा। इसिलए नई पीढ़ी को इस किताब को जरूर पढ़नी चाहिए ताकि उनकी समझ विकसित हो सके।