Modi Speech in UN # स्थायी सदस्यता के लिए भारत कब तक इंतजार करे: PM मोदी

नई दिल्ली/न्यू यॉर्क । । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा (Modi Speech in UN) के 75वें सत्र को संबोधित किया। करीब 22 मिनट लंबे अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी को पुरजोर तरीके से उठाया। उन्होंने आतंकवाद को समूची मानवता का दुश्मन करार दिया। पीएम मोदी ने अपने भाषण में लोककल्याणकारी योजनाओं का जिक्र करते हुए न्यू इंडिया की बुलंद तस्वीर पेश की। कोरोना महामारी को लेकर उन्होंने पूरी दुनिया को आश्वस्त किया कि सबसे बड़ा वैक्सीन उत्पादक देश विश्व को इस संकट से निकालने के लिए हर कोशिश करेगा।

‘आज से बहुत अलग थी 1945 की दुनिया’

1945 की दुनिया निश्चित तौर पर आज से बहुत अलग थी। पूरा वैश्विक माहौल-साधन, संसाधन, समस्याएं, समाधान सब कुछ भिन्न थे। ऐसे में विश्व कल्याण की भावना के साथ जिस संस्था का गठन हुआ, जिस स्वरूप में गठन हुआ, वो भी उस समय के हिसाब से था। आज हम एक बिल्कुल अलग दौर में हैं। इक्कीसवीं सदी में हमारे वर्तमान की, हमारे भविष्य की आवश्यकताएं और चुनौतियां अब कुछ और हैं। इसलिए आज पूरे विश्व समुदाय के सामने एक बहुत बड़ा सवाल है कि जिस संस्था का गठन तब की परिस्थितियों में हुआ था, उसका स्वरूप क्या आज भी प्रासंगिक है। सदी बदल जाए पर हम न बदलें तो बदलाव लाने की ताकत भी कमजोर होती है। अगर हम बीते 75 वर्षों में संयुक्त राष्ट्र की उपलब्धियों का मूल्यांकन करें तो कई उपलब्धियां दिखाई पड़ेंगीं। लेकिन इसके साथ ही अनेक ऐसे उदाहरण भी हैं जो संयुक्त राष्ट्र के सामने गंभीर आत्ममंथन की आवश्यकता खड़ी करते हैं।

‘यूएन की कई उपलब्धियां लेकिन नाकामियां भी’

यह बात सही है कि कहने को तो तीसरा विश्व युद्ध नहीं हुआ लेकिन इस बात को नकार नहीं सकते कि अनेकों युद्ध हुए, अनेक गृह युद्ध भी हुए। कितने आतंकी हमलों ने दुनिया को थर्रा कर रख दिया। खून की नदियां बहती रहीं। इन युद्धों में, इन हमलों में जो मारे गए वो हमारी, आपकी तरह इंसान ही थे। वो लाखों मासूम बच्चे जिन्हें दुनिया पर छा जाना था वो दुनिया छोड़कर चले गए। कितने ही लोगों को अपने जीवन भर की पूंजी गंवानी पड़ी। अपने सपनों का घर छोड़ना पड़ा। उस समय और आज भी संयुक्त राष्ट्र के प्रयास क्या पर्याप्त थे?

‘कोरोना महामारी से निपटने के प्रयासों में संयुक्त राष्ट्र कहां है?’

पिछले 8-9 महीनों से पूरा विश्व कोरोना वैश्विक महामारी से संघर्ष कर रहा है। इस वैश्विक महामारी से निपटने के प्रयासों में संयुक्त राष्ट्र कहां है? एक प्रभावशाली रिस्पॉन्स कहां है? संयुक्त राष्ट्र की प्रतिक्रियाओं में बदलाव, व्यवस्थाओं में बदलाव, स्वरूप में बदलाव समय की मांग है। संयुक्त राष्ट्र का जो भारत में सम्मा है। भारत के 130 करोड़ रुपये से ज्यादा लोगों का इस वैश्विक संस्था में जो अटूट विश्वास है, वह आपको बहुत ही कम देशों में मिलेगा।

‘आखिर कब तक भारत को UN के डिसिजन मेकिंग स्ट्रक्चर से अलग रखा जाएगा?’

लेकिन ये भी उतनी ही बड़ी सच्चाई है कि भारत के लोग संयुक्त राष्ट्र के रिफॉर्म्स को लेकर जो प्रोसेस चल रहा है उसके पूरा होने का बहुत लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं। आज भारत के लोग चिंतित हैं कि क्या ये प्रोसेस कभी एक लॉजिकल एंड पर पहुंच पाएगा। आखिर कब तक भारत को संयुक्त राष्ट्र के डिसिजन मेकिंग स्ट्रक्चर से अलग रखा जाएगा? एक ऐसा देश जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, एक ऐसा देश जहां विश्व की 18 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या रहती है, एक ऐसा देश जहां सैकड़ों भाषाएं हैं, सैकड़ों बोलियां हैं, अनेकों पंथ हैं, अनेकों विचारधाराएं हैं। जिस देश ने सैकड़ों वर्षों तक वैश्विक अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करने और सैकड़ों वर्षों तक गुलामी दोनों को झेला है।

‘जब हम मजबूत थे तो दुनिया को कभी सताया नहीं, मजबूर थे तो कभी नहीं बने बोझ’

जब हम मजबूत थे तो दुनिया को कभी सताया नहीं। जब हम मजबूर थे तो दुनिया पर कभी बोझ नहीं बने। जिस देश में हो रहे परिवर्तनों का प्रभाव दुनिया के बहुत बड़े हिस्से पर पड़ता है, उस देश को आखिर कब तक इंतजार करना पड़ेगा।

‘UN में अपनी व्यापक भूमिका की तरफ देख रहे हैं भारतवासी’

संयुक्त राष्ट्र जिन आदर्शों के साथ स्थापित हुआ था उससे भारत की मूल दार्शनिक सोच बहुत मिलती-जुलती है। संयुक्त राष्ट्र के इसी हाल में यह शब्द बहुत बार गूंजा है-वसुधैव कुटुंबकम। हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। ये हमारी संस्कृति, संस्कार और सोच का हिस्सा है।