महात्मा बुद्ध की कथा …….

महात्मा बुद्ध की कथा है। वह एक बार अपने शिष्यों को एक रुमाल में पांच गांठें लगाकर देते हैं और पूछते हैं कि इन्हें विपरीत दिशा में खींचने पर क्या होगा? क्या ये गांठें खुल सकती हैं? तब शिष्य कहते हैं कि ये तो और ज्यादा कस जाएंगी। बुद्ध उन्हें समझाते हैं कि हमने मन पर इसी तरह की गांठें लगा रखी हैं। हमें उन्हें खोलने का उपाय खोजना चाहिए। ये गांठें खोलकर ही हम अपना मन साफ कर सकेंगे और हर व्यक्ति के लिए मन को करुणा और प्रेम से भर सकेंगे।

स्वयं बुद्ध ने खतरनाक हत्यारे डाकू अंगुलिमाल का दिल ऐसे ही बदल दिया था। अंगुलिमाल बुद्ध से कहता है कि उसके जीवन का उद्देश्य लोगों की हत्या करना है। तब बुद्ध ने अपनी करुणा और प्रेम से उसका हृदय परिवर्तन कर दिया और एक हत्यारा बुद्ध के प्रेम से भिक्षु बन गया। बुद्ध का मानना था कि नफरत का जवाब नफरत नहीं है, उसे प्रेम से ही खत्म किया जा सकता है।

बुद्ध की ही तरह कबीर का संदेश भी प्रेम ही है। कबीर तो यहां तक कहते हैं- जो तोको कांटा बुवै ताहि बोए तू फूल। कबीर ने भी वाणी के संयम पर बहुत जोर दिया है। वह कहते हैं, ‘कुटिल वचन सब ते बुरा, जारि करै सब छार! साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार!!’ कबीर यह भी कहते हैं कि जिसने जबान को बस में कर लिया उसने सारा जहान बस में कर लिया।

बुद्ध, कबीर जैसे लोग न सिर्फ प्रेम और करुणा की, बल्कि समाज में धर्म जाति पर आधारित सभी भेद तोड़ने की बात भी करते हैं। दोनों मनुष्य के बीच में कोई भेद नहीं स्वीकार करते हैं। सारे बंदों को एक ही नूर से उपजा मानते हैं। प्रेम और करुणा व्यक्ति का सबसे आवश्यक गुण मानते हैं। कबीरदास कहते हैं मनुष्य में कोई पैदाइशी भेद नहीं होता है। जन्म से सभी एक जैसे होते हैं, बाद में हम श्रेणियों में बांट देते हैं। बुद्ध के यहां भी कोई भेद नहीं है। वह कहते हैं, जैसे सारी नदियां समंदर में मिलती हैं, वैसे हमारे धर्म में सारी जातियां एक हो जाती हैं।

आज फिर से बुद्ध और कबीर को याद करने का समय है। समाज में तमाम तरह के भेद गहराते जा रहे हैं। लोगों में सहिष्णुता, करुणा कम हो रही है। कायिक, वाचिक, मानसिक हर तरह की हिंसा की प्रवृत्ति बढ़ रही है। लोग तनाव और दबाव में धैर्य खोते जा रहे हैं।

ऐसे में जरूरत है हम और ज्यादा बुद्ध और कबीर जैसी विभूतियों को याद करें। उनके संदेश के मर्म को समझें जिससे यह सृष्टि मनुष्य के रहने लायक बची रहे। सिर्फ प्रेम और सहअस्तित्व की भावना ही इस विश्व को बचा सकती है। आज कबीर और बुद्ध के संदेश को याद करके सारे भेद मिटाकर प्रेम की रोशनी से सभी के हृदय को आलोकित करने की जरूरत है।