अदालत ने ईआईए 2020 मसौदे पर सुझाव देने की समयसीमा बढ़ाकर 11 अगस्त की

दिल्ली उच्च न्यायालय ने पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) मसौदा 2020 की अधिसूचना पर सुझाव देने की अवधि मंगलवार को बढ़ाकर 11 अगस्त तक कर दी और कहा कि वह समयसीमा को लेकर ‘‘अस्पष्टता’’ को दूर नहीं करने पर केंद्र के ‘‘हठ से हैरान’’ है। मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने यह आदेश पारित किया।

पीठ ने सोमवार को कहा था कि केन्द्र सरकार ने अपने पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) मसौदा 2020 की अधिसूचना पर आपत्तियां दर्ज कराने और सुझाव देने की समयसीमा 30 जून तक बढ़ाने का जो फैसला लिया है, उसे लेकर ”अस्पष्टता” है। अदालत ने पर्यावरण मंत्रालय द्वारा ‘‘अस्पष्टता’’ संबंधी प्रश्नों का उत्तर नहीं दिए जाने के बाद अवधि 11 अगस्त तक बढ़ा दी। पीठ ने कहा कि वह ‘‘अस्पष्टता’’ दूर करने के संबंध में केंद्र सरकार के ‘‘हठ’’ से ‘‘हैरान’’ है।

पीठ ने पर्यावरण मंत्रालय के जवाब का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘इसमें (शपथपत्र में) अस्पष्टता को लेकर एक शब्द भी नहीं कहा गया है। आपके उत्तर में मुख्य बिंदू पर चुप्पी साधी गई है। स्पष्ट कहें तो हम केंद्र सरकार के हठ से थोड़ा हैरान हैं। सरकार इस मामले में हठी रवैया अपना रही है।’’ अदालक ने यह भी कहा, ‘‘अस्पष्टता पर अदालत के सवाल का जवाब देने का कोई प्रयास नहीं किया गया। आपके उत्तर में इस बारे में स्पष्ट रूप से चुप्पी साधी गई है। यह हमारे प्रश्न का उत्तर नहीं देने के समान है।’’

अदालत ने कहा कि वह सरकार के ‘‘इस रवैये’’ से नाखुश है। उसने कहा कि लोगों से विचार-विमर्श करने की प्रक्रिया ‘‘कोई बाधा नहीं’’ है। पीठ ने कहा, ‘‘इसका (विचार-विमर्श) कुछ महत्व है, इसकी कुछ शुचिता है।’’ अदालत ने कहा कि वह ईआईए 2020 के मसौदे पर सुझाव के लिए कोरोना वायरस वैश्विक महामारी का खतरा बने रहने तक समयसीमा बढ़ाए जाने का अनुरोध करने संबंधी पर्यावरण संरक्षणविद विक्रांत तोंगड़ की याचिका आंशिक रूप से स्वीकार कर रही है। इस संबंध में विस्तृत आदेश की प्रतीक्षा की जा रही है।तोंगड़ की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि यह ‘‘परेशान’’ करने वाली बात है कि अपने शपथपत्र के अनुसार सरकार ने परियोजना के 78,000 से अधिक प्रस्तावकों को ई-मेल भेजकर उन्हें मसौदा ईआईए के बारे में जानकारी दी और उनके सुझाव मांगे लेकिन वह इसे क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित करने की इच्छुक नहीं है।

सुनवाई के दौरान उन्होंने अपील की कि अदालत मंत्रालय को मसौदा ईआईए 2020 सभी क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित करने का आदेश दे, ताकि अधिकतर लोग इसे समझ सकें और इसे लेकर अपने सुझाव दे सकें या आपत्तियां दर्ज करा सकें। इससे पहले, अदालत ने कहा था कि केन्द्र सरकार ने अपने ईआईए मसौदा 2020 की अधिसूचना पर आपत्तियां दर्ज कराने और सुझाव देने की समयसीमा 30 जून तक बढ़ाने का जो फैसला किया है, उसे लेकर ”अस्पष्टता” है।

अदालत ने कहा था कि ईआईए मसौदा 2020 की अधिसूचना पर आपत्तियां दर्ज कराने और सुझाव देने की समयसीमा 30 जून तक बढ़ाने को लेकर पर्यावरण मंत्रालय की आठ जून की अधिसूचना स्पष्ट नहीं है, क्योंकि इसमें एक तरफ कहा गया है कि समयसीमा 60 दिन के लिये बढ़ाई गई है, वहीं यह भी कहा गया है कि 30 जून को आपत्तियां और सुझाव देने की खिड़की बंद हो जाएगी। मंत्रालय की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) मनिंदर आचार्य ने पीठ को बताया था कि इस अवधि को 30 जून तक बढ़ाने का इरादा था।

एएसजी ने कहा कि ईआईए मसौदा 2020, 11 अप्रैल को प्रकाशित किया गया था और 60 दिन की अवधि पूरी करने के बाद 11 जून को यह खत्म होना था, लेकिन कोविड-19 महामारी के चलते इसकी अवधि को बढ़ाकर 30 जून करने का फैसला किया गया। उन्होंने बताया कि इसे अंग्रेजी और हिंदी में प्रकाशित किया जा चुका है।याचिका में दावा किया गया था कि आठ मई की अधिसूचना कहती है कि आपत्ति मांगने की अवधि 60 दिन के लिए और बढ़ा दी गई है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि 60 दिन की अवधि कब शुरू हुई। इसमें कहा गया, ‘‘यदि 60 दिन की अवधि मसौदा अधिसूचना की तारीख को शुरू होती है जो कि 23 मार्च 2020 है तो बढ़ाई गई अवधि की समापन तिथि 18 जुलाई 2020 होगी।

यदि राजपत्र में अधिसूचना की तारीख (जो कि 11 अप्रैल 2020 है) को 60 दिन की अवधि की शुरुआत के रूप में लिया जाए तो विस्तारित अवधि की समापन तिथि नौ अगस्त 2020 होगी।’’ याचिका में यह भी कहा गया कि इसके साथ ही अधिसूचना में विस्तारित अवधि की समापन तिथि 30 जून 2020 बताए जाने से एक विरोधाभास भी उत्पन्न होता है क्योंकि इस तारीख के हिसाब से आठ मई को संबंधित अधिसूचना जारी किए जाने के बाद यह अवधि 60 दिन से कम है।

इसमें दावा किया गया, ‘‘इस तरह, अवधि विस्तार संबंधी अधिसूचना अस्पष्ट और विरोधाभासी है।’’ याचिका में कहा गया, ‘‘मसौदा अधिसूचना में कुछ मामलों में जनता की राय को पूरी तरह नजरअंदाज करने, जनता की राय मांगने की अवधि 45 दिन से घटाकर 40 दिन करने और परियोजनाओं के लिए काम शुरू होने के बाद मंजूरी देने सहित मौजूदा नियमों में बदलाव करने जैसे कदम प्रस्तावित हैं।’’