अरबिन्द कुमार | hdnlive
नई दिल्ली || लेखक व कवि अरविंद ‘अजल’ के उपन्यास फ्लैट नंबर 42 (Flat No.42) का शनिवार को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (Press Club of India)में लोकार्पण किया गया। यह उपन्याय संधीस पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है। लोकार्पण के मौके पर पूर्व सांसद महाबल मिश्रा, इंडियन मीडिया जर्नलिस्ट यूनियन(indian media journalist union) के अध्यक्ष बाला भास्कर एस, (bala bhaskar s)राजधानी कॉलेज के प्रोफेसर डा. वेद मित्र शुक्ल ,(rajdhani college) साहित्यकार, पत्रकार प्रेम प्रकाश, सुशील देव, नीलेश संप्रीत, वरिष्ठ पत्रकार अजय पांडेय, संधीस पब्लिकेशन के कर्ताधर्ता हरि कृष्ण यादव, वासुदेव मिश्र, करन सिंह भूचाल मौजूद थे।
इंडियन मीडिया जर्नलिस्ट यूनियन दस साल होने का जश्न
इससे पहले यहां इंडियन मीडिया जर्नलिस्ट यूनियन दस साल होने का जश्न मनाते हुए बैठक की गई। इसमें यूनियन के अध्यक्ष बाला भास्कर एस ने यूनियन की शुरूआत उसके इतिहास, पत्रकारिता जगत की उथल-पुथल और पत्रकारों की पेंशन जैसे मुद्दों पर अपने विचार रखें। इस दौरान यूनियन के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष स्वर्गीय राम गोपाल यादव की स्मृति में संगोष्ठी में उनके साथियों ने उन्हें याद किया।
किशोरावस्था के दौरान प्रेम और करियर को चुनने के अंतरद्वंद को प्रस्तुत कर रहा है
अजल इससे पूर्व गजल और नज्मों की पुस्तकें भी लिख चुके हैं। उन्होंने बताया कि उपन्यास फ्लैट नंबर 42 की सबसे बड़ी खूब यह है कि यह किशोरावस्था के दौरान प्रेम और करियर को चुनने के अंतरद्वंद को प्रस्तुत कर रहा है। यह उपन्यास गहन प्रेम की अनुभूतियों का मार्मिक संगुंफन है। यह इस केंद्रीय विचार के साथ बुना गया है कि स्मृतियां कभी खत्म नहीं होतीं। इसमें प्रेम का आवेग किशोरावस्था का है, जो ढलती उम्र में एक बार फिर कल्ले फोड़ने लगता है। करीब तीस साल बिछोह के बाद। उसका भी एक फलसफा है कि शरीर बेशक बूढ़ा हो जाए, मगर भावनाएं सदा जवान रहती हैं।
किशोरावस्था का वह प्रेम किन्हीं परिस्थितियों के चलते अपने संकल्पों तक नहीं पहुंच
स्कूली दिनों में पनपा प्रेम, नायक और नायिका के सदा साथ रहने के दृढ़ संकल्प के साथ अपनी जड़ें मजबूत करता जाता है। मगर जीवन भला कब इतना समतल हुआ है कि उसमें सब कुछ सुखद हो। जीवन इतना समतल होता तो शायद इतनी कहानियां भी नहीं बुनी जा पातीं। किशोरावस्था का वह प्रेम किन्हीं परिस्थितियों के चलते अपने संकल्पों तक नहीं पहुंच पाता। टूटता नहीं, पर उसकी दिशा बदल जाती है। नायिका का विवाह हो जाता है। मगर प्रेम कभी समाप्त नहीं होता। जीवन की आपाधापी में वह बेशक कुछ समय के लिए अवरुद्ध हो जाए, पर अनुकूल वातावरण में वह फिर से पनपने लगता है। प्रेम के अनेक कोण हैं, उसके अनेक स्वरूप हैं। वह अपना स्वरूप बदलता भी रहता है। उम्र के हिसाब से, स्थितियों के हिसाब से। इसलिए कि वह भावनाओं का खेल है।